यह नोट करना दिलचस्प है कि अभिषेक बच्चन जो ऋषिकेश मुखर्जी के रुपहले पर्दे की सबसे पसंदीदा जोड़ी अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के बेटे हैं, ने ऋषि दा की सबसे पसंदीदा कॉमेडी फिल्मों में से एक ‘गोलमाल’ के बहुत ही उथले किस्म के संस्करण में काम किया। मैं नहीं जानता कि ऋषि दा इस नई ‘गोलमाल’ पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते। लेकिन मैं यह जानता हूं कि वह बच्चन परिवार से बहुत प्यार करते थे। ऋषि दा ने अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी के साथ दो बेहतरीन प्रमाणिक क्लासिक फिल्में- ‘अभिमान’ और ‘मिली’ बनाई थी। अमिताभ के साथ बनाई गई उनकी कई फिल्मों में से एक फिल्म है ‘बेमिसाल’। इस फिल्म में अमिताभ बच्चन का बहुत ही भावपूर्ण अभिनय है।
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समरेश बसु के उपन्यास पर आधारित ‘बेमिसाल’ एक विचित्र, सनकी परोपकारी की कहानी है। अमिताभ बच्चन ने इसमें सुधीर की भूमिका निभाई है। एक कसूरवार अनाथ जिसे एक दयालु सरकारी अधिकारी (ओम शिवपुरी) सहारा देता है। यह सरकारी अधिकारी सुधीर का अपने बेटे प्रशांत (विनोद मेहरा) की तरह ही पालन-पोषण करता है। बहुत बाद में जब यह सरकारी अधिकारी अचानक दिल का दौरा पड़ने की वजह से मृत्यु शैया पर पड़ा होता है तो वह अपनी बहू कविता (राखी) से कहता है, “मेरा बेटा (प्रशांत) थोड़ा कमजोर है। लेकिन जब भी संकट आए, तुम आंखें मूंदकर सुधीर पर भरोसा कर सकती हो।” ये उपदेश भरे शब्द थे। जैसे- जैसे असाधारण रूप से घटनाओं से भरा हुआ कथानक आगे बढ़ता है तो हम देखते हैं कि किस तरह से सुधीर उस दयालु व्यक्ति जिसने उसे बचपन में सहारा दिया था, के बेटे को बचाने के लिए चुपके से कदम आगे बढ़ाता है।
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यही है जो ‘बेमिसाल’ को त्याग और आत्म बलिदान की एक अनूठी और ताजगी से भरी हुई कहानी बनाता है। सुधीर जो कुर्बानियां देता है, वे बहुत बाद में उस सच्ची विशालता के साथ सामने आती हैं जब समय यह बताता है कि उसने अपने उस दोस्त को कितना कुछ दिया है जिसके पिता ने उस समय उसे सहारा दिया था जब वह सड़कों पर मारा-मारा फिर रहा था। ‘बेमिसाल’ में गोद लेने को लेकर भी एक संदेश है। फिल्म में ओम शिवपुरी कहते हैं, “मुझे यह सलाह दी गई थी- एक कुत्ते को ले आओ लेकिन फुटपाथ से किसी बच्चे को घर नहीं लाओ। मैंने किसी की नहीं सुनी। और यह मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन फैसला था।”
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सुधीर का किरदार एक बनावटी हंसी लिए हुए एक पहेली की तरह उभरता है। न केवल उनके द्वारा उसे गलत समझा जाता है जो उस प्यार करते हैं बल्कि वह खुद भी इसमें आनंद लेता है कि जो वह वास्तव में है, उसे उसके एकदम उलट समझा जा रहा है। अमिताभ बच्चन ने सुधीर के किरदार के रूप में पूरी खामोशी के साथ बलिदान देने की भूमिका को बहुत ही अधिक बुद्धिमता और संवेदनशीलता से निभाया। अमिताभ अपने किरदार की उदारता की भावना को कभी ग्लोरिफाई नहीं करते हैं। सुधीर अंदर ही अंदर रोता है। वह केवल देता है और देता है क्योंकि वह इसी तरीके से जीता है।
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सुधीर और उसके दोस्त प्रशांत की पत्नी कविता के बीच जो रिश्ता बनता है, वह बहुत ही अनूठा है। पूरी फिल्म में वह कविता को सखी कहता है। सुधीर कविता के पति और ससुर के सामने उसके साथ हंसी-ठठ्ठा भी करता है। वह उसे अपने गहरे राज बताता है और उसमें वे भी शामिल हैं जो उसके प्रेम-प्रसंग के राज हैं। और अंत में जब सुधीर जेल जाता है, और जो फिल्म का सबसे यादगार दृश्य है, तो वहां उससे कविता मिलने आती है। उसने अपनी पसंदीदा लाल किनारे वाली सफेद साड़ी पहनी हुई होती है। तब सुधीर कविता और हमें (दर्शक) अपने बंद किए हुए दिल में झांकने देता है। यह दिल को झकझोरने वाला दृश्य है। सुधीर का एकालाप इसे भावनात्मक गौरव की ऊंचाइयों तक ले जाता है। वह कविता से कहता है- वह उसके लिए कितना मायने रखती है और इसलिए नहीं कि वह उसके दोस्त की पत्नी है। हम देखते हैं कि उसके दिल के जख्म खुलते हैं और कथानक में फैल जाते हैं।
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हालांकि‘बेमिसाल’ के समय तक आते- आते ऋषि दा का अपने किरदारों और उनकी अंदरुनी जिंदगियों पर उनकी जो सौम्य संवेदनशील अप्रोच रही है, जो हमें ‘मिली’ तक उनकी फिल्मों में दिखाई देती है, धीमी पड़ गई थी। ‘बेमिसाल’ फिल्म के दूसरा हिस्से(मध्यांतर के बाद) में जब प्रशांत चिकित्सा कदाचार के आकर्षक जाल में फंस जाता है, तो हमारे सामने कई तरह की स्पर्श-रेखाएं और उप-कथाएं सामने आती हैं। इसमें सुधीर का विक्षिप्त भाई (अमिताभ बच्चन ने इस फिल्म में दोहरी भूमिका निभाई है) है जो सुधीर से कहता है कि जिस औरत ने उसे (सुधीर के भाई को) बर्बाद किया है, वह उससे बदला ले।
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बेमिसाल में सखी (सुधीर कविता को इसी नाम से पुकारता है) और सुधीर का रिश्ता इतना सहज और स्वाभाविक है कि आप इस रिश्ते को अपने दिल के करीब रखना चाहते हैं। कविता और सुधीर के बीच की बॉन्डिंग जेंडर से भी परे चली जाती है। मजेदार बात यह है कि ‘बेमिसाल’अमिताभ बच्चन, राखी और ऋषिकेश मुखर्जी की ऐसी दूसरी फिल्म थी जहां नायक को नायिका नहीं मिलती। वास्तव में किसी को नहीं मिलती। ‘बेमिसाल’ से पहले ऋषि दा ने ‘जुर्माना’ बनाई थी। इस फिल्म में भी अमिताभ और राखी के साथ विनोद मेहरा हैं। ‘जुर्माना’ और ‘बेमिसाल’ में अमिताभ बच्चन के निभाए गए किरदार ऊपर से भले ही दोषपूर्ण लगते हों लेकिन फिल्म के अंत में ये किरदार बहुत ही प्रशंसनीय रूप में सामने आते हैं।
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( फिल्म बेमिसाल के बारे में अमिताभ बच्चन से सुभाष के झा की बातचीत के अंश)
सवाल- 1982 की ऋषिकेश मुखर्जी की निर्देशित यह फिल्म व्यापक स्तर पर बिना नोटिस के रह गई। लेकिन मेरे हिसाब से ‘बेमिसाल’ में आपका अभिनय बहुत लाजवाब था। आप इस फिल्म को अपनी कृति में, और खासकर आपने ऋषि दा के साथ जो फिल्में की हैं, किस जगह पर रखते हैं?
जवाब- मैं इस टिप्पणी को चुनौती दूंगा कि ऋषिदा की फिल्म के रूप में ‘बेमिसाल’ को नोटिस ही नहीं किया गया। ऋषि दा की किसी भी फिल्म का गुमनामी से कभी भी वास्ता नहीं पड़ा। दुर्भाग्य से नोटिस लेने का जो पैमाना है, वह इसके व्यापार के साथ देखा गया। ऋषि दा बहुत ही सीमित और बहुत ही कम बजट में फिल्में बनाते थे, और जो उन्हें वापस मिलता था, वह बहुत ही हानिकारक नहीं होता था। उनकी फिल्मों ने समर्पित दर्शकों और समर्पित वाणिज्य को आकर्षित किया। मैं ‘बेमिसाल’ में अपने किरदार को बहुत पसंद करता हूं और उनकी अन्य फिल्मों में मेरी भूमिकाएं जो चुनौतीपूर्ण थीं तो इस फिल्म मैंने उसे बहुत ही चुनौतीपूर्ण पाया।
सवाल- आपने इस फिल्म में दोहरी भूमिका निभाई। एक नायक जो चुपचाप कुर्बानियां देता है और जिसके बारे में कोई नहीं जानता और फिर आपने नायक के भाई की भूमिका निभाई। आपने इन दो भूमिकाओं को किस तरह से निभाया?
जवाब- ‘एक खामोश व्यक्ति के क्रोध से सावधान रहें’- यह एक कहावत है जिसे मैंने अपने जीवन की बहुत सारी चुनौतीपूर्ण घटनाओं में इस्तेमाल किया है। मैं ऐसा मानता हूं कि ऋषि दा ने उस किरदार के बारे में जो मैंने निभाया, उसको गढ़ने के दौरान ऐसा ही सोचा था।
सवाल- आपने, राखी ने और विनोद मेहरा ने इससे पहले ऋषि दा की ‘जुर्माना’ में काम किया था। क्या यह भाईचारा (कैमअराडरि) था?
जवाब- आपने कैमअराडरिकी बात कही, तो क्या यह तब नहीं होना चाहिए जब कलाकार साथ काम करते हैं! राखी जी और मैंने बहुत-बहुत सारी फिल्मों में साथ काम किया है और साथ ही विनोद मेहरा के साथ भी– संयोग से बहुत कम में- इसलिए हां, इस तरह की परिस्थितियों में सौहार्द का प्रभाव हमेशा ही अद्भुत होता है। लेकिन यदि हम में नहीं होता, मैं सोचता हूं, सभी कलाकार बहुत ही पेशेवर हैं जो निजी विशिष्टताओं और नजरिये को इसमें घुसने नहीं देते। कम-से-कम मैं तो इसे ऐसे ही देखता हूं।
सवाल-अपनी खामोशियों के जरिये अशांत नायक के अंदरुनी दुनिया को निभाना कितना मुश्किल था?
जवाब- मैं जिस भी फिल्म में काम करता हूं, मेरा प्रदर्शन निर्देशक द्वारा निर्देशित होता है। यदि आपने ‘बेमिसाल’ में मेरे प्रदर्शन में जो कुछ भी अर्थपूर्ण नोटिस किया है तो उसका श्रेय केवल और केवल ऋषि दा को जाता है। ऋषिदा एक अनूठे निर्देशक थे। वह अपनी फिल्म को बनने से पहले ही अपने दिमाग में संपादित कर लेते थे।
सवाल- क्या आपको लगता है कि‘बेमिसाल’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता हासिल नहीं की?
जवाब- जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि ऋषि दा की कोई भी फिल्म असफल नहीं थी।
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