आमतौर पर माना जाता है कि प्रोपेगंडा फिल्मों के राजनीतिक असर नहीं होते। यानी, इन फिल्मों से चुनाव के नतीजों पर कोई खास असर नहीं पड़ता। अब यह बात कितनी सही या गलत है, इस मुद्दे पर न जाते हुए यह तो साफ दिख रहा है कि हाल में कुछ ऐसी फिल्में जरूर आईं, जिनका मकसद ऐसा ही था। कुछ और आ रही हैं जो इसी मकसद को ध्यान में रखकर लाई जा रही हैं।
बहरहाल, पुलवामा हमले के बाद से ही भेड़चाल वाले बॉलीवुड में कई प्रोड्यूसर और डायरेक्टर पुलवामा हमले और पाकिस्तान में इंडियन एयरफोर्स के स्ट्राइक और पायलट अभिनंदन के प्रसंग पर फिल्मों की घोषणा करने के लिए एक दूसरे पर गिरे पड़े जा रहे हैं। फिल्म निर्माताओं की जिस संस्था में फिल्मों के टाइटल रजिस्टर होते हैं, वहां फिल्मों के टाइटल रजिस्टर कराने के लिए लाइन लगी हुई है। इसमें संजय लीला भंसाली जैसे बड़े प्रोड्यूसर से लेकर माधुरी दीक्षित के पूर्व सचिव रिक्कु राकेश नाथ जैसे लोग शामिल हैं।
हालांकि जिन लोगों ने ‘उरी: सर्जिकल स्ट्राइक’ बनाई, वे इस दौड़ से बाहर हैं। कम से कम उनका नाम अभी सामने नहीं आया है, जबकि वे इस विषय पर फिल्म बनाने के सबसे बड़े दावेदार हैं। ‘उरी’ के बारे में एक बात साफ तौर पर कही जाती रही है कि यह फिल्म केंद्र सरकार के शीर्ष लोगों की देखरेख में बनाई गई। इन लोगों ने न केवल फिल्म की पटकथा बल्कि उसमें दिखाए गए शीर्ष लोगों का चित्रण कैसा हो, इस पर भी फैसले लिए।
हां, यह जरूर है कि इस फिल्म पर शुद्ध रूप से प्रोपेगंडा फिल्म होने के आरोप नहीं लगे, जैसा कि उसी के आसपास में रिलीज हुई ‘एक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर’, बाला साहेब ठाकरे पर बनी ‘ठाकरे’ और मधुर भंडारकर की ‘इंदू सरकार’ जैसी फिल्मों पर लगे। तकनीकी रूप से मजबूत ‘उरी’ ने बॉक्स ऑफिस पर भी 200 करोड़ से ऊपर की कमाई कर डाली।
राष्ट्रवाद और राष्ट्रवादी अभिमान की हवा पर सवार केंद्र सरकार ने इस फिल्म का जमकर फायदा उठाया। बीजेपी के छोटे-बड़े नेताओं समेत केंद्रीय मंत्रियों ने फिल्म के समर्थन में बयान दिए, ट्वीट किया। खुद प्रधानमंत्री अपने कार्यक्रमों में फिल्म के संवाद बोलते देखे-सुने गए।
अब ऐसी हालत में जब पुलवामा हमला, उसके बाद की एयरस्ट्राइक और इसके हीरो अभिनंदन की तस्वीर वाले राजनीतिक पोस्टर अभी से गली-चौराहों में दिखने लगे हैं, इसपर अगर कोई फिल्म बनेगी, तो उसकी निर्माण प्रक्रिया में केंद्र सरकार की बड़ी भूमिका होगी, यह कहना गलत नहीं होगा। साथ ही, इस फिल्म के राजनीतिक इस्तेमाल की कोशिशें नहीं होंगी, यह मानना और भी गलत होगा।
दिल्ली के गलियारों में यह चर्चा है कि वही लोग क्यों न इस आगामी राष्ट्रवादी फिल्म को बनाएं जिन्होंने ‘उरी: सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी एक सफल फिल्म दी है? क्यों न ‘उरी: सर्जिकलस्ट्राइक’ के डायरेक्टर आदित्य धर ही पुलवामा वाली फिल्म को डायरेक्ट करें? क्यों न रॉनी स्क्रूवाला ही इसे प्रोड्यूस करें, जिन्होंने उरी प्रोड्यूस की थी? सवाल लाजिमी है।
बहरहाल, वह जब होगा तब होगा। अभी तो नई सरकार आनी है। मौजूदा सरकार अपनी वापसी को लेकर इतनी आश्वस्त है कि ‘उरी: सर्जिकल स्ट्राइक’ से जुड़े लोगों को भी आश्वस्त कर दिया गया है कि लोगों को शोर मचाने दो। फिल्म तो तुम्हें ही बनानी है। लेकिन बॉलीवुड में तो भेड़चाल चलती है। आइडिया और कॉन्सेप्ट की मारामारी रहती है। सभी को पुलवामा में बॉक्स ऑफ़िस पर करोड़ों के वारे न्यारे दिख रहे हैं। ‘सर्जिकल स्ट्राइक 2.0’, ‘बालाकोट’, ‘पुलवामा’, ‘पुलवामा अटैक’, ‘पुलवामा: द सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘वाररूम’, ‘पुलवामा टेरर अटैक’, ‘द अटैक्स ऑफ पुलवामा’ जैसे नाम रजिस्टर करा लिए गए हैं।
यह तय है कि इस फिल्म का मामला बिना सरकार की अनुमति के आगे नहीं बढ़ सकता है और अब इस फिल्म का जो होगा, नई सरकार में ही होगा। ऐसा भी न लगे कि यह एक सस्ती सी प्रचारक फिल्म है... पटकथा से लेकर, शूट की अनुमति और शूट में इस्तेमाल होने वाले एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर, मेकेनाइज्ड व्हीकल, वॉटर बोर्न वार वेसल्ज़... इन सब की जरूरत तो बिना सरकार, रक्षा मंत्रालय, सेना की मदद के हो नहीं सकती। तो, इस पर जो भी फिल्म बनाएगा, अभी उसके लिए सिर्फ एक विकल्प है- इंतजार!
दूसरी तरफ, अचानक भारतीय सेना और डिफेंस से जुड़े मसलों पर फिल्में बनाने में लोगों की बढ़ती रुचि देखते हुए अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी सजग हो गया है। अब इसने सेंसर बोर्ड समेत फिल्म से जुड़े अपने विभागों से कहा है कि वे जरा सावधानी से इस पर नजर रखें। भारतीय सेना के कई नए, पुराने वीरों और दिवंगत हो चुके व्यक्तित्वों पर फिलहाल कम से कम दर्जन भर फिल्में सिर्फ घोषणा से लेकर निर्माण के विभिन्न चरण पर हैं।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ पर फिल्मकार मेघना गुलजार की घोषित फिल्म इन सब घोषणाओं में सबसे गंभीर घोषणा लगती है। इसे रॉनी स्क्रूवाला (जिन्होंने उरी... बनाई) प्रोड्यूस करेंगे और इसके लिए मेघना गुलजार रणवीर सिंह को एप्रोच कर रही हैं। ये फिल्में उन फिल्मों के अलावा हैं जो शुद्ध रूप से राजनीतिक प्रोपेगेंडा के लिए और राजनीतिक फायदे के लिए या नेताओं की चमचागिरी के लिए बनाई जा रही है। इसमें प्रधानमंत्री मोदी के जीवन पर बनी या बनने वाली शॉर्ट फिल्म से लेकर कई प्रस्तावित बायोपिक शामिल हैं।
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