चर्चित अभिनेता सलमान खान लॉकडाउन लगाए जाने के करीब चार महीने बाद आखिरकार अपने परिवार के साथ जुड़े ताकि वह गणेश चतुर्थी के पावन समारोह में पूरे परिवार के साथ शामिल हो सकें। मुंबई में गणेश उत्सव दस दिनों तक मनाया जाता है। यह खासतौर से महाराष्ट्र राज्य का बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। कोरोना लॉकडाउन के बाद सलमान खान पहली बार अपने भाई सोहेल के घर पर पूरे परिवार से मिले। सलमान के पिता और लेखक सलीम खान कहते हैं कि उनका परिवार भारत के धर्मनिरपेक्ष मूल्य का हमेशा से ही बिना किसी दिखावे के समर्थन करता है। वह कहते हैं, “मेरी पत्नी हिंदू है। मैं मुसलमान हूं। हमारे सभी बच्चे स्वतंत्र विश्वासों के साथ बड़े हुए हैं। हमारे परिवार के लिए ईद और गणेश चतुर्थी जो क्रमशः एक दूसरे के बाद आते हैं, दोनों ही समान महत्व रखते हैं।”
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सलमान जो कि “न हिंदू और न ही मुसलमान, स्वयं की पहचान, बस, सलमान, एक इंसान, के तौर पर ही पसंद करते हैं।” उनका पालन-पोषण बहुत ही गहरे धर्म निरपेक्ष मूल्यों के साथ हुआ है। यह बाकी खान सुपर स्टारों- शाहरुख, आमिर और सैफ के घरों से अलग नहीं है जहां गणेश चतुर्थी की पहल इस वर्ष भगवान गणेश की मूर्ति को घर लाकर हुई। रोचक बात तो यह है कि तीनों खान सुपर स्टारों की पत्नियां हिंदू हैं और उनके बच्चे ईश्वर एक है के भाव के साथ बड़े हुए हैं। सैफ अली खान के सबसे छोटे बेटे तैमूर की मां करीना कपूर खान हर रोज सोने से पहले उस छोटे से बच्चे को हर धर्मग्रंथ से कहानियां पढ़कर सुनाती हैं। हाल ही में तैमूर को सोशल मीडिया पर उनके द्वारा ‘लिगो’ ब्लॉक्स से बनाए गए भगवान गणेश की मूर्ति के साथ देखा गया।
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फिल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक रूमी जाफरी कहते हैं, “सैफ, आमिर, शाहरुख और सलमान खान के घर भारत की आत्मा को धारण करते हैं। मुझे विश्वास है कि भारत सलमान के घर में रहता है। उसकी मां हिंदू है और पिता सलीम खान साहब की दूसरी पत्नी(पूर्व अभिनेत्री और डांसर हेलेन) ईसाई है। सलमान के दो जीजा हिंदू ब्राह्मण हैं। सलमान के घर में गणेश चतुर्थी और दीवाली उतने ही जोशो-खरोश से मनाई जाती है जितने ईद और क्रिसमस के त्योहार और यह इसलिए नहीं किया जाता कि उन्हें मीडिया के कैमरे देख रहे हैं। सलीम साहब का परिवार तब से सेक्युलर है जब सेक्युलर बनना फैशनेबल भी नहीं था।”
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रूमी जाफरी मुसलमान हैं। वह मध्यप्रदेश के भोपाल शहर में बिताए अपने बचपन को याद करते हुए कहते हैं, “हम सभी लड़के लोग होली, दीवाली और गणेश चतुर्थी-जैसे हिंदू त्योहारों को बिना किसी की धार्मिक पहचान पूछे मनाते थे। हमें तो यह कभी जहन में भी नहीं आया कि मैं मुस्लिम हूं या फिर बाकी लड़के हिंदू हैं। राजनीतिक कारणों के लिए बनाई गई ऐसी धार्मिक पहचान ने भारत की सच्ची धर्मनिरपेक्ष चादर को छलनी कर दिया है। ‘हिंदू-मुस्लिम भाई- भाई’ जैसे स्लोगन की क्या जरूरत है? मेरे तीन भाई हैं। हम हर समय एक-दूसरे को गले नहीं लगाते रहते और न ही एक साथ तस्वीरें खींचते रहते हैं कि हमेशा यह याद रख सकें कि हम भाई हैं।”
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भारतीय फिल्म जगत की बेहतरीन अदाकारा, एक्टिविस्ट और साहसी शबाना आजमी कहती हैं कि उनके पिता और सुविख्यात शायर कैफी आजमी ने अपने बच्चों- शबाना और सिनेमेटोग्राफर-फिल्ममेकर बाबा आजमी, के अंदर बचपन से ही धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का गढ़ा है। वह कहती हैं, “हमारे घर में कोई धार्मिक रीति-रिवाज तो नहीं होते थे लेकिन धार्मिक त्योहार पहले भी और आज भी हमारे घर में तथा फिल्म इंडस्ट्री जरूर मनाए जाते हैं। इनमें दीवाली, होली, ईद और गणेश चतुर्थी मुख्य हैं। मेरी दोनों भाभियां तन्वी आजमी और सुलभा आर्या(अभिनेत्रियां) महाराष्ट्र की हैं। हमारे घर में सबसे ज्यादा जोर-शोर से गणेश चतुर्थी मनाई जाती है।”
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शबाना आजमी मानती हैं कि सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता भारत के डीएनए में गढ़ी हुई है। वह कहती हैं, “भारत की सबसे बड़ी ताकत उसकी विविधता और मिश्रित संस्कृति है। मेरे पिता उर्दू के जाने-माने शायर और गीतकार थे। उन्होंने परिवार में हमारी समृद्धि सांस्कृतिक विरासत के लिए अकूत प्यार भरा जिसका मूल विविधता और विशिष्टता है। हम होली, दीवाली, ईद, क्रिसमस, गणेश चतुर्थी मनाते हुए ही बड़े हुए हैं और आज तक मना रहे हैं।”शबाना आजमी अपने अतीत से याद करते हुए कहती हैं कि मेरी मां का विशिष्ट सांस्कृतिक समावेश उनके घर के रख-रखाव में झलकता था।
वह कहती हैं, “मेरी मां शौकत कैफी ने पूरे देश की बहुत सारी यात्राएं की क्योंकि वह अंतरराष्ट्रीय रूप से विख्यात पृथ्वी थियेटर का एक हिस्सा थीं और यहां तक कि वह जो दो सौ स्केवयर फीट का कमरा हमारे पास था, वहां भी पर्दे उड़ीसा के थे, चादर हैदराबाद की कलमकारी के थे और तकिये गुजरात के थे, आदि- आदि। मैं नौ वर्ष की उम्र तक कम्युनिस्ट पार्टी के कम्युन में रही हूं जिसे रेड फ्लैग हॉल कहते थे। वहां आठ परिवार एक ही टॉयलेट और बाथरूम इस्तेमाल करते थे। मेरे मां के अंतिम घर जानकी कुटीर में मंदिर की घंटियां थीं, रोम के आइकन थे, ईरान से आए सिरेमिक पर अल्लाह लिखा था। हमने विविधता के बारे में निकट संपर्क से सीखा।”
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मुंबई से बहुत दूर अपने पैतृक गांव उत्तर प्रदेश के बुढ़ाना में हमारे आज के बॉलीवुड के बहुत ही जाने-माने कलाकार नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने भी चुपचाप गणेश चतुर्थी मनाई। नवाजुद्दीन सिद्दीकी बहुत उत्साह के साथ बताते हैं, “ गणेश चतुर्थी और होली तथा दीवाली-जैसे हिंदू त्योहार मेरे जीवन में बहुत महत्व रखते हैं। मेरे गांव में सब लोग, हिंदू या मुस्लिम, सभी त्योहार मनाते हैं। मुझे याद है जब मैं दिल्लीमें एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) का छात्र था तो हम सभी होली की तैयारियां दस दिन पहले से ही किया करते थे। तब हमसे किसी ने कोई राजनीतिक प्रश्न नहीं पूछा जैसे कि‘आप गणेश चतुर्थी क्यों मनाना चाहते हैं जबकि आप मुस्लिम हैं?’ मेरे लिए यह प्रश्न बेमानी है। यह उतनी ही बेवकूफी से भरा है जितना कि अगर कोई तुमसे पूछे कि‘तुम मुस्लिम होकर भी उसी हवा में सांस क्यों लेते हो जिसमें तुम्हारा हिंदू पड़ोसी लेता है?’ हम गणेश चतुर्थी मनाते हैं क्योंकि हम भारतीय हैं।”
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अभिनेता संजय दत्त की मां नरगिस सुविख्यात अभिनेत्री थीं। वह मुस्लिम थीं। उनके पिता सुनील दत्त हिंदू थे और प्रख्यात अभिनेता तथा राजनेता थे। नरगिस और सुनील दत्त ने अपने बच्चों को एक उदार धार्मिक माहौल में बड़ा किया। संजय दत्त बड़ी सादगी से कहते हैं, “जब मैं बच्चा था तो हमारे घर में गणेश चतुर्थी बड़े धूमधाम से मनाई जाती थी। और अब इसे मेरे बच्चे भी बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।” बॉलीवुड वास्तव में उस धार्मिक भेदभाव की राजनीति से अछूता है जिसने सारे देश को अपने चपेट में ले लिया है।
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