‘तलत महमूद’, भारतीय सिनेमा का वो नायाब हीरा जो हमेशा अपनी चमक को बनाए रखने के लिए हर संभव कोशिश करता रहा लेकिन वक़्त के फेर ने तलत महमूद को गुमनामी के गलियारों में कहीं खो दिया। अपनी मखमली आवाज़ के बावजूद तलत बाकी कलाकारों की तरह अपनी अमर गाथा की छाप लोगों के दिलों में शायद ना छोड़ पाएं हों लेकिन उनके गीत उनके चाहने वालों के दिल में एक अलग मुकाम रखते हैं। हालांकि तलत की तुलना अगर रफ़ी या किशोर जैसे महान कलाकारों से की जाए तो यह भी सही नहीं होगा क्योंकि विनर और लूजर जैसे शब्द उनके लिए आप्रसंगिक हैं।
लखनऊ से ऑल इंडिया रेडियो में ग़ज़लें गाकर अपने करियर की शुरुआत करने के बाद तलत महमूद को असली पहचान साल 1944 में गाए गीत 'तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी' से मिलनी शुरू हुई। आज बड़े-बड़े गायक देश-विदेश में स्टेज शो करते हैं लेकिन इस ट्रेंड को शुरू करने वाले एक मात्र कलाकार तलत महमूद ही थे।
साल 1961 पाकिस्तान में एक कंसर्ट हुआ था। पाकिस्तान में भी तलत के चाहने वालों की तादात कुछ कम नहीं थी और इस बात का सबूत उनके कंसर्ट में आए लगभग 60 हज़ार लोगों ने दिया। उन दिनों पाकिस्तान में मल्लिका-ए-तरन्नुम ‘नूरजहां’ की शौहरत बुलंदियों पर थी। तरन्नुम ने तलत को ख़त लिख कर लाहौर में होने वाले अपने कंसर्ट का हिस्सा बनने की पेशकश रखी लेकिन अपने खुद्दार मिजाज़ वाले तलत ने अपनी मसरुफियत का हवाला देकर उनके प्रोग्राम में शिरकत करने से मना कर दिया।
नूरजहां ने सोचा कि शायद कंसर्ट में न आने के लिए तलत ने पैसों की वजह से मना किया होगा और इसीलिए नूरजहां ने एक खाली चेक पर साइन कर के तलत को भिजवाया और उसमें अपनी मर्जी से पैसे भरने के लिए कह दिया। लेकिन पैसों का मोह तो तलत साहब को कभी था ही नहीं और उन्होंने बड़ी ही सादगी और विनम्रता से नूरजहां के इस प्रस्ताव को भी मना कर दिया।
हिंदी से लेकर बांग्ला सिनेमा तक तलत ने ना जाने कितने अभिनेताओं के लिए अपनी आवाज़ दी। और इसके अलावा अभिनय में अपनी किस्मत अजमाने के लिए उस दौर की कई महान अदाकाराओं के साथ काम किया। 1951 में तलत ने बांग्ला सिनेमा की ही एक हीरोइन लतिका मलिक से शादी करने के बाद अपने जीवन की नयी पारी की शुरू की और यह शादी उनका लिए काफी हद तक सही भी साबित हुई और फिर 9 मई, 1998 का वो दिन आया जब भारतीय सिनेमा का ये सितारा हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गया।
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