सिनेमा

क्या बोली और भाषा के साथ इंसाफ कर रही हैं हमारी फिल्में और अभिनेता !

फिल्म ‘सोन चिरिया’ में ज्यादातर गैर बुंदेलखंडी एक्टर्स ने जिस तरह बुंदेली भाषा के साथ न्याय किया, वह देखने योग्य है। वहीं, सटीक बिहारी हिंदी बुलवाने का काम जितना बेहतरीन प्रकाश झा ने बिहार पृष्ठभूमि वाली अपनी फिल्मों में किया है, उतना शायद कोई और कर पाया।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

कुछ होते हैं ऐक्टर। कुछ होते हैं स्टार। और कुछ विरले ऐसे होते हैं जिनमें दोनों का थोड़ा-थोड़ा मेल होता है। यानी, वे होते तो स्टार हैं, लेकिन एक्टिंग भी कर सकते हैं। लेकिन मान लीजिए कोई एक बड़ा बंबईय्या स्टार है। ऊपर वाले ने उसे एक्टिंग नाम की नियामत नहीं दी है। लेकिन उसे कोई ऐसा रोल मिल जाए जो उसके बूते का नहीं है और यह रोल उसे करना ही है, तो उसे कष्ट होता है। असली कष्ट तो खैर दर्शकों को होता है, जो उसे पर्दे पर झेलते हैं, लेकिन तब भी कष्ट तो उसे होता ही है।

अब उसे अचानक कोई ऐसा रोल मिल जाए जिसमें उसे राजस्थानी बोलनी है, तो क्या होगा? होगा यह कि स्टार की मदद के लिए ऐसे लोगों की फौज रखी जाएगी जो इस बंबईय्या बोली बोलने वाले ठस स्टार को कम से कम ऐसी स्थिति में ले आएं कि वह कुछ संवाद राजस्थानी में बोल सके। या कम से कम दर्शकों को ऐसा लगे कि पट्ठा राजस्थानी बोलने की कोशिश कर रहा है। इसके उलट, कई ऐसे अभिनेता हैं जो भले ही जन्म से बिहारी हों, लेकिन जब वे परदे पर बुंदेलखंडी बोलते दिखते हैं, तो लगता है कि बुंदेलखंड में ही पैदा हुए होंगे।

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खैर, जब सलमान खान को ‘सुल्तान’ फिल्म में हरियाणवी बोलनी थी, तो तय किया गया कि भाई को हरियाणवी सिखाने के लिए कायदे के लोग चाहिए। कायदे के लोग कौन हुए? जो हरियाणा के हों, हरियाणवी जानते हों...वही ना? जी नहीं...क़ायदे के लोग वे हुए जिन्हें भाई पसंद करें, जिनकी शक्ल-सूरत, आचार-व्यवहार भाई को पसंद आए, भले ही उनकी हरियाणवी थोड़ी कमजोर हो। सो, पूरे छब्बीस लोगों के इंटरव्यू किए गए। उनमें से अपने लिए भाई ने एक हरियाणवी ट्यूटर चुना।

अब उसकी ड्यूटी यह लगी कि भाई जहां भी जाते हैं, उसे साथ रहना है। भाई जिम जा रहे हैं, वहां उसे साथ रहना है। कसरत करते-करते भाई के दिमाग में हरियाणवी के दो-चार शब्द फिट कर देने हैं। भाई किसी दूसरी फिल्म के सेट पर हैं, भाई को जब मौका मिला, हरियाणवी एक्सेंट पकड़ा देना है। भाई खाना खा रहे हैं...भाई नहा रहे हैं...भाई आराम कर रहे हैं, भाई फोन पर हैं... हर समय उसे साथ रहना है। कब भाई का मूड हो जाए और वह हरियाणवी सीखने का ऑर्डर दे दें। खैर, नतीजा यह हुआ कि सलमान खान, पर्दे पर हरियाणवी पहलवान बन पाए!

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विभा छिब्बर वैसे तो अभिनेत्री हैं। ‘ब्लैक मेल’, ‘जॉली एलएलबी’, ‘चक दे इंडिया’, ‘गजिनी’ जैसी कई फिल्मों में काम कर चुकी हैं। लेकिन उनका एक काम फिल्मी सितारों, खासकर अंग्रेजी मिजाज की अभिनेत्रियों को डिक्शन की ट्रेनिंग देना है। उन्होंने दीपिका पादुकोण को भी हिंदी सिखाई है। उन्होंने डायना पेंटी, नर्गिस फकरी, फ्रीडा पिंटो जैसों को भी हिंडी से हिंदी बोलना सिखाया है। पिछले तीस सालों से वह ऐसे लोगों को न केवल हिंदी बोलना बल्कि पर्दे पर चरित्र के हिसाब से कैसे बोलना है, यह सिखा रही हैं।

हाल में, ऋतिक रोशन ने ‘सुपर 30’ में एक बिहार के रहने वाले शख्स का किरदार निभाया। फिल्म के रिलीज होने से पहले बहुत लोग सोच रहे थे कि ऋतिक बिहारी किरदार के साथ जस्टिस कर पाएंगे या नहीं। लेकिन उन्होंने किया। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर कहानी मजबूत हो, स्क्रिप्ट मजबूत हो और अभिनय मजबूत हो, तो बाकी चीजें गौण हो जाती हैं। तब आप इसे इग्नोर करते हैं कि ऋतिक, बिहार के किसी किरदार की बोली को अपने संवादों में हूबहू पकड़ पाए हैं या नहीं? वैसे, बताते हैं कि बिहारी लहजा पकड़ने के लिए ऋतिक ने पूरे अठारह महीने मेहनत की। उन्हें भी बिहारी मूल के एक अभिनेता गणेश कुमार ने बिहारी हिंदी की ट्रेनिंग दी है। वैसे बिहारी हिंदी क्या होती है? रविवार को रवीबार बोलिए... एक ठो, दू ठो... बोलिए? कलकुलेशन, भोकेबलरी बोलिए? शायद नहीं।

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किसी गैर बिहारी व्यक्ति से लगभग सटीक बिहारी हिंदी बुलवाने का काम जितना बेहतरीन फिल्मकार प्रकाश झा ने बिहार पृष्ठभूमि वाली अपनी फिल्मों में किया है, उतना शायद कोई और फिल्मकार नहीं कर पाया। इसकी बड़ी वजह यह है कि वह अपने संवादों को ही कुछ इस तरह लिखते हैं कि कोई गैर बिहारी अभिनेता भी उसे सिर्फ पढ़ दे, तो वह बिहारी टोन और एक्सेंट के बिलकुल करीब आ जाएगा।

आदिल हुसैन (‘इंग्लिश विंग्लिश’, ‘मुक्तिभवन’, ‘लाइफ ऑफ पाइ’) एक बेहतरीन अभिनेता हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के हैं। मूल रूप से असम के हैं लेकिन उन्होंने प्रकाश झा की एक नई फिल्म ‘परीक्षा’ में एक बिहारी किरदार निभाया है। उस बिहारी किरदार को आदिल ने किस शिद्दत से निभाया है, उसे देखने के लिए आपको वह फिल्म देखनी होगी। तो, जैसा कि हमने लेख के शुरू में कहा, जो अभिनेता होते हैं, जिनके खून में अभिनय है, उन्हें कोई किरदार दे दो, कोई बोली बुलवा लो, वे उसमें जान डाल देंगे।

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पिछले दिनों रिलीज हुई ‘सोन चिरिया’ को दर्शकों ने नकार दिया, लेकिन वह एक बेहतरीन फिल्म थी। उसमें आप देखिए कि ज्यादातर गैर बुंदेलखंडी (मनोज वाजपेयी, रणवीर सिंह, रणवीर शौरी समेत) अभिनेताओं ने किस तरह बुंदेली भाषा के साथ न्याय किया है। सुना है, कि एक कोई लैंग्वेज ट्रेनर रखा गया था, लेकिन मंजे हुए अभिनेताओं ने बहुत जल्दी वह भाषा पकड़ ली। हां, अगर कोई गैर अभिनेता है, गलती से इस लाइन में आ गया है, तो उसे किसी भाषा में ट्रेन करने में ट्रेनर के पसीने छूट जाते हैं।

राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से पढ़े अभिनेता पंकज झा ने कई मौकों पर अपने प्रोड्यूसर-डायरेक्टर दोस्तों के कहने पर अपने सह अभिनेताओं को डिक्शन की ट्रेनिंग दी है। उनका अपना अनुभव यह है कि अगर अभिनेता किसी गलतफहमी के चक्कर में एक्टर बनने मुंबई भाग आया है, तो उसे कौन समझाए कि भाई तेरे से ना हो पाएगा... तू वापस निकल ले। ऐसों को कुछ भी सिखाना पत्थर में से तेल निकालना है। बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियां भी इसी श्रेणी में आती हैं, जिन्हें परदे पर संवाद बोलते सुनना अपने आप में एक सजा है।

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वैसे, कई बार अजीब स्थिति तब हो जाती है जब स्टार कोई संवाद ठीक तरह से नहीं बोल रहा। किसी शब्द का उच्चारण ठीक नहीं हो रहा। डायरेक्टर ने डरते-डरते स्टार से कहा। स्टार ने एक और टेक लिया और उसे करेक्ट करने की कोशिश की। तब भी नहीं हुआ। डायरेक्टर ने दुबारा कहने की हिम्मत जुटाई किअभी भी ठीक नहीं हुआ। इस बार स्टार गरम हो जाएगा। गुर्रा कर डायरेक्टर की ओर देखेगा। शॉट ओके कर दिया जाएगा, भले ही स्टार ‘मैं डरा हुआ था’ को ‘ मैं ड्रा हुआ था’ बोल रहा हो।

एक अभिनेता थे दारा सिंह। अभिनेता क्या थे, पहलवान थे। पहलवानी करते-करते अभिनेता बन गए थे। एक बार उन्हें एक संवाद बोलना था जिसमें बार-बार रीटेक हो रहे थे। दारा सिंह के सामने एक हीरोइन खड़ी थी। दारा सिंह का संवाद था, “तू मायावी है। मैं तेरे साथ नहीं रह सकता।” अब दारा सिंह बार बार कहें, “तू मैवी है। मैं तैनूं साथ नइ रह सकदां।” डायरेक्टर ने बार-बार समझाया कि बाऊजी... आप पंजाबी पिक्चर नहीं कर रहे। हिंदी पिक्चर कर रहे हो, लेकिन दारा सिंह तो दारा सिंह ठहरे। तैनूं तो ख़ैर उन्होंने सुधार लिया लेकिन मायावी नहीं बोल पाए। जब डायरेक्टर टोके, तो बोलें कि मैंने तो सही बोला था। तू चेक कर ले। अपनी रिकॉर्डिंग चेक कर...देख ले...डायरेक्टर जब पक गया, तो उसने सरेंडर कर दिया। तो ऐसा भी होता है।

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