फिल्म इंडस्ट्री में अचानक एक्टरों का अकाल हो गया है। इस अकाल से इंडस्ट्री के गिने-चुने लोग प्रभावित नहीं हैं, लेकिन बाकियों के लिए यह अकाल भारी पड़ रहा है। एक अनार, सौ बीमार वाली हालत है। जिस अभिनेता की एक फिल्म रिलीज हुई है, वह भी अचानक इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास साधारण निर्माता-निर्देशक के लिए कोई समय नहीं है। लेकिन अगर निर्माता-निर्देशक बड़ा हो या माल अच्छा मिल रहा हो, तो फिर उनके पास फुर्सत ही फुर्सत है।
कुछ दिनों पहले की बात है। विक्की कौशल के छोटे भाई सनी कौशल को बतौर हीरो लेकर एक महोदय फिल्म बनाने का मन बना चुके थे। सनी कौशल भी इस प्रोजेक्ट को लेकर उत्साहित थे। इस बीच इन फिल्मकार महोदय को फंड-वंड जुटाने में थोड़ी देर हो गई, तो सनी कौशल निकल लिए। अब जब इन भाई साहब के पास फिल्म बनाने लायक पैसे आ गए, तो इन्होंने सनी कौशल को फिर अप्रोच किया। लेकिन इस बार उन्होंने अपनी व्यस्तता का हवाला देकर हाथ जोड़ लिए।
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उधर इसी एक महीने में सनी कौशल की झोली में तीन-तीन फिल्में गिर गईं और वो भी मडोक फिल्म्ज, रोनी स्क्रूवाला जैसे बड़े प्रोडक्शन हाउसों की फिल्में। सनी कौशल इससे पहले सिर्फ अक्षय कुमार की ‘गोल्ड’ में नजर आए थे। बड़े भाई विकी कौशल की तरह वह भी अच्छे अभिनेता हैं, लेकिन ‘उरी’ के बाद जैसे विकी बड़े स्टार हो गए हैं, वैसे ही किसी एक फिल्म से सनी का सितारा भी चमक सकता है, ऐसी उम्मीद बहुत लोगों को है। इसी उम्मीद ने उन भाई का कबाड़ा कर दिया जिनका उल्लेख ऊपर हुआ है।
लेकिन समस्या यह नहीं है। समस्या यह है कि बॉलीवुड के चुनिंदा प्रोड्यूसरों और प्रोडक्शन हाउसों ने मंझोले स्तर के स्टार और कलाकारों पर कब्जा कर लिया है। एक तरह की गैंगबाजी जैसी स्थिति है। चूंकि आमतौर पर कोई एक्टर एक साथ दो-तीन प्रोजेक्ट से अधिक का कमिटमेंट नहीं कर सकता, इसलिए वह इन बड़े प्रोडक्शन हाउसों के लुभावने प्रस्ताव में फंस जाता है। नतीजा यह होता है कि अपेक्षाकृत छोटे या उस लॉबी से बाहर के निर्माता एक्टरों को ढूंढते रह जाते हैं।
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फिल्म आलोचक से फिल्मकार बने उत्पल बोरपुजारी कहते हैं, “यह सच है कि सिनेमा की दुनिया में एक फिल्म से किस्मत बदलती है। एक फिल्म पहले तक आप संघर्षशील अभिनेता हैं और एक फिल्म हिट होते ही आप स्टार हो जाते हैं। फिर आप उसी लीग में शामिल हो जाते हैं, जिसमें बड़े स्टार होते हैं। आपके नखरे और आपकी कीमत भी बढ़ जाती है। आपके और अच्छे फिल्मकारों के बीच सेक्रेटेरी और पीआर वगैरह वाले आ जाते हैं और आप सिर्फ बड़े प्रोडक्शन हाउस या कॉरपोरेट फिल्म कंपनियों तक सीमित हो जाते हैं और अच्छी फिल्में, अच्छे डायरेक्टर के साथ काम करने का आपका शुरुआती एजेंडा सिर्फ नाम का रह जाता है।”
विक्की कौशल, राज कुमार राव, पंकज त्रिपाठी, जैसे कई अभिनेता, जिन्होंने ‘इंडिपेंडेंट सिनेमा’ को आगे बढ़ाने का झंडा उठाकर फिल्म इंडस्ट्री में संघर्ष की शुरुआत की थी, आज इंडिपेंडेंट सिनेमा बनाने वाले लोगों की पहुंच से बाहर होकर करण जौहर, भूषण कुमार, संजय लीला भंसाली, दिनेश विजन जैसे बड़े निर्माताओं की गिरफ्त में हैं। हाल में, राज कुमार राव ने करण जौहर की कंपनी के साथ कथित तौर पर चौबीस करोड़ रुपये में तीन फिल्मों की डील की है, जिनमें से एक फिल्म ‘भूत’ का प्रोडक्शन भी शुरू हो गया है।
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पंकज त्रिपाठी ने हाल ही में मुंबई के मडआयलैंड में एक अपार्टमेंट में पेंट हाउस खरीदा है। सालों के संघर्ष के बाद पेंट हाउस खरीदने और पैसे बनाने में जरा भी बुराई नहीं है, लेकिन अगर आप धीरे-धीरे इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं, ऐश्वर्य और संसाधन को अपनी आदत बना लेते हैं, तब आप सिनेमा की बजाय पैसा देखने लगते हैं। सिनेमा आपके लिए सिर्फ पैसा बनाने का जरिया बन जाता है और आप कहानी की बजाय प्रोजेक्ट पर ध्यान देने लगते हैं।
पिछले छह महीनों से इन तीन अभिनेताओं में से एक के पीछे पड़े एक डायरेक्टर ने अपना दर्द कुछ इस तरह साझा किया, “मेरे पास एक अच्छी कहानी थी। अभिनेता महोदय को बहुत पसंद भी आई। पैसे की बात हो गई। शूटिंग की तारीखें भी उन्होंने दे दी। तभी एक बड़े प्रोडक्शन हाउस ने उन्हें एक ऐसा ऑफर दिया जिसे वह मना नहीं कर सके। उन्होंने मेरे साइनिंग अमाउंट को लौटा दिया। वह लालच में आ गए।”
इस हालत में रही-सही कसर वेब सीरीज ने पूरी कर दी है। नेटफ्लिक्स, अमेजन, हॉट स्टार्स, जी-फाइव समेत टाइम्स समूह के मैक्स प्लेयर सरीखे नए-पुराने प्लेयर अब बड़े से लेकर मंझोले अभिनेताओं को इतने पैसे दे रहे हैं कि वे अब कहानी, डायरेक्टर या इंडिपेंडेंट सिनेमा जैसी चीजों के बारे में सोचते भी नहीं। बस पैसे मिलने चाहिए।
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हां, हमने इस पूरे मामले में बड़े सितारों को इसलिए शामिल नहीं किया, क्योंकि उनका मामला ही अलग है। अब तो अक्षय कुमार जैसे स्टार सीधे प्रोड्यूसर से पूछते हैं, ‘तेरे को कितने पैसे चाहिए ये बता?’ इसको इस तरह समझें। आप प्रोड्यूसर हैं। आपने एक कहानी के साथ अक्षय कुमार से संपर्क किया। अक्षय को कहानी पसंद आ गई। अब अक्षय आपसे पूछेंगे कि आपको कितना चाहिए। यानी प्रोड्यूसर के तौर पर आप इस फिल्म से कितनी कमाई करना चाहेंगे?
मान लें कि अक्षय की फीस छोड़कर अगर फिल्म का प्रोडक्शन बजट बीस करोड़ है, तो अक्षय निर्माता से यह कह सकते हैं कि फिल्म के बजट के ऊपर तुम दस और ले लो और सारा प्रोजेक्ट मेरा। यानी, फिल्म ने अगर सारे राइट्स बेचकर सौ करोड़ बनाए, तो प्रोड्यूसर को तीस करोड़ से संतोष करना होगा। बाकी के सत्तर करोड़ अक्षय कुमार की जेब में जाएंगे।
आज, सलमान, शाहरुख और आमिर खान भी इसी मॉडल पर काम कर रहे हैं। बड़े सितारों के साथ काम करता हुआ प्रोड्यूसर, दरअसल अब लाइन प्रोड्यूसर या एग्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर बन कर रह गया है। सो, मिला-जुलाकर कहा जाए तो सबसे बड़ा रुपय्या वाला मामला हो गया है।
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दो अगस्त को रिलीज होने वाली एक फिल्म ‘जबरिया जोड़ी’ बनाने के लिए बालाजी टेलीफिल्म्स की एकता कपूर ने पर्सेप्ट फिल्म कम्पनी के शैलेश सिंह को, बाजार के अनुमान के मुताबिक, बीस-पचीस करोड़ दिए। फिल्म पंद्रह में बनी हो या अठारह करोड़ में, लेकिन फिल्म के डिजिटल राइट पहले ही एक बड़ी कंपनी को बीस करोड़ रुपये में बेचे जा चुके हैं। इसके बाद, फिल्म के थियेटर राइट, ओवरसीज राइट जैसे कई राइट्स हैं, जो एक अनुमान के मुताबिक पचास करोड़ रुपये में पेन नाम की एक कंपनी को बेचे जा चुके हैं। मतलब यह कि फिल्म के रिलीज होने से पहले ही फिल्म कई गुना फायदे में पहुंच चुकी है।
ऐसे में, जहां पैसा ही बोलता हो, लगभग सारे बड़े और मंझोले स्टार और एक्टर इन बड़ी कंपनियों की शरण में हैं। फिल्म भले ही तुरंत नहीं बन रही हो, उन्हें साइन कर लिया जा रहा है। उनके डेट्स ब्लाक कर लिए जा रहे हैं। उन्हें उनकी कीमत से कहीं ज्यादा देकर ‘बंधक’ बना लिया जा रहा है। वे चाहकर भी इस जाल से नहीं निकल पा रहे। कहानी पर पैसा हावी है।
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