कहवा खाना

जिस चुनार के किले में प्रियंका गांधी ने काटी रात, रहस्यों से भरा और हैरान करने वाला है उसका इतिहास 

जिस चुनारगढ के किले में प्रियंका गांधी को रखा गया वो भारत की ऐतिहासिक विरासत और एक अनमोल धरोहर है। चुनारगढ़ के किले का इतिहास में एक विशेष स्थान है। आज हम आपको चुनारगढ़ किले से जुड़ी बेहद दिलचस्प और हैरान करने वाली बातें बताएंगे।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाने वाला उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले का चुनार इन दिनों चर्चा में है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी शुक्रवार को सोनभद्र नरसंहार पीड़ितों से मिल जा रहीं थीं। प्रदेश पुलिस ने उन्हें चुनार में ही रोक लिया। जिस चुनारगढ के किले में प्रियंका गांधी को रखा गया वो भारत की ऐतिहासिक विरासत और एक अनमोल धरोहर है। चुनारगढ़ के किले का इतिहास में एक विशेष स्थान है। आज हम आपको चुनारगढ़ किले से जुड़ी बेहद दिलचस्प और हैरान करने वाली बातें बताएंगे।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

यह किला मिर्जापुर के चुनार में स्थित है। एक समय इस किले को हिंदू शक्ति का केंद्र माना जाता था। यह किला लगभग 5 हजार वर्षों का इतिहास सहेजे हुए है। जिस पहाड़ी पर यह किला स्थित है उसकी बनावट मानव के पांव के आकार की है। इसलिए इसे चरणाद्रिगढ़ के नाम से भी जाना जाता है। बताया जाता है कि चुनार किले का इतिहास महाभारत काल से भी पुराना है।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

बताया जाता है कि इस किले पर महाभारत काल के सम्राट काल्यवन, पूरी दुनिया पर राज करने वाले उज्जैन के प्रतापि सम्राट विक्रमादित्य, हिन्दु धर्म के अन्तिम सम्राट प्रिथ्वीराज चौहान से लेकर सम्राट अकबर और शेरसाह सुरी जैसे शासकों ने शासन किया है। यह किला कितना पुराना है उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके निर्माण काल का किसी को पता नहीं है। कोई नहीं जनता कि इस किले का निर्माण किस शासक ने कराया है। इतिहासकार बताते हैं कि महाभारत काल में इस पहाड़ी पर सम्राट काल्यवन का कारागार था

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

ऐसी भी कहानियां हैं जिसमें ये कहा गया है कि सम्राट विक्रमादित्य के बड़े भाई राजा भतृहरि ने राजपाठ त्याग करने के बाद इसी पहाड़ी पर तपस्या की थी। राजा भतृहरि गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। राजा भतृहरि अपने गुरु गोरखनाथ से ज्ञान लेकर चुनारगढ़ आए और यहां तपस्या करने लगे। उस समय इस स्थान पर घना जंगल हुआ करता था। जंगल में हिंसक जंगली जानवर रहते थे। राजा भतृहरि के भाई सम्राट विक्रमादित्य ने योगीराज भतृहरी कि रक्षा के लिए इस पहाड़ी पर एक किले का निर्माण कराया ताकी उनके भाई भतृहरि की जंगली जानवरों से रक्षा की जा सके। दुर्ग में आज भी उनकी समाधि बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि योगीराज भतृहरी कि आत्मा आज भी इस पर्वत पर विराजमान है। हालांकि तमाम इतिहासकार इसे मान्यता नहीं देते हैं पर मिर्जापुर गजेटियर में इसका उल्लेख किया गया है।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

कहा जाता है कि इस पर्वत पर कई तपस्वियों ने तप किए। यह पर्वत (किला) भगवान बुद्ध के चातुर्मास नैना योगीनी के योग का भी गवाह है। नैना योगीनी के कारण ही इसका एक नाम नैनागढ़ भी है। चुनारगढ़ के किले पर कई शासकों ने शासन किए। शेरशाह सूरी ने 1530 ई. में चुनार के किलेदार ताज खां की विधवा ‘लाड मलिका’से विवाह करके चुनार के शाक्तिशाली किले पर अधिकार कर लिया था।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

1532 ई. में मुगल बादशाह हुमायूं इस किले पर कब्जा करने की कोशिश की। हुमायूं ने इस किले को चार महीने तक घेर कर रखा लेकिन उसके सफलता हाथ नहीं लगी। हुमायूं को मजबूरन शेरशाह से संधि करनी पड़ी और उसके इस किले को शेरशाह के पास ही रहने दिया। लेकिन बाद में हुमायूं ने अपने तोपों के दम पर धोखेबाजी से इस किले पर कब्जा जमा लिया। 1561ई. में अकबर ने चुनार को अफगानों से जीता और इसके बाद यह दुर्ग मुगल साम्राज्य का पूर्व में रक्षक दुर्ग बन गया। इस किलें को बिहार और बंगाल का गेट माना जाता था। तब से ले कर 1772 ई. तक चुनार किला मुग़ल सल्तनत के अधीन रहा। जिसके बाद मुगलों से ईस्ट इण्डिया कंपनी ने यह किला जीता लिया, उसके बाद से इस किले पर अग्रेंजो का कब्ज़ा हो गया। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस किले के निर्माण से लेकर अंग्रेजों के किलें पर कब्जे तक करीब 17 या 18 राजाओं नें इस किले पर राज किया।

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वर्तमान समय में इस किले को अत्यधिक प्रसिद्धि बाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित प्रसिद्ध तिलिस्मी उपन्यास चंद्रकांता संतति के कारण मिली। चंद्रकांता उपन्यास का केन्द्र बिन्दु चुनारगढ़ है। हालांकि चंद्रकांता का सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है। इसके बावजूद चुनारगढ़ भारत का सबसे बड़ा तिलिस्मि और रहस्यमयी किला माना जाता है। कहा जाता है कि इस किले के तहखाने में खजाना छिपा हुआ है। स्थानीय लोगों ने कई बार इसकी खुदाई की भी मांग की है।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

किले के ऊपर एक बहुत गहरी बाउली है जिसमें पानी के अन्दर तक सिढियां बनी हैं, इसके दिवारों पर कई तरह के चिन्ह बने हैं। ये चिन्ह प्राचीन लिपि (भाषा) कि तरफ इशारा करते हैं। किले में ऊंचाई पर 52 खंभों पर बना हुआ सोनवा मंडप है। कहा जाता है कि इस मंडप के नीचे रहस्यमयी और तिलिस्मी तहखाना है। बताया जाता है कि तहखाने में कई बंद दरवाजे हैं। इन दरवाजों से किले के भीतर जाने का रास्ता है। इन तहखानों के अंदर कई रहस्य छुपे हैं।

Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

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Published: 20 Jul 2019, 2:27 PM IST

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