भाषाओं में धर्मों से लेकर विभिन्न आदिवासी समूहों में घुलमिल जाने की अपनी अलग ही प्रकृति होती है। यह आश्चर्यजनक है! भारतीय भाषाओं में आकर ‘बादाम’ बन जाने वाला संस्कृत का ‘वातामा’ शब्द मूल रूप से फारसी शब्द ‘वातम’ से निकला है। प्राचीन भारत में पश्चिम और पूर्व के बीच समुद्री और रेशम व्यापार मार्गों ने एक भाषा के शब्द को दूसरी भाषा में स्वीकृत हो जाने में बहुत मदद की। फारसी के ‘वातम’ ने ऐसे ही संस्कृत में प्रवेश किया और फिर लोक भाषाओं में। बादाम और सूखे मेवे मुख्यतः फारस और अफगानिस्तान से आयात किए जाते थे जबकि रेशम और मसाले भारत, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया से। जिस तरह एक देश की चीजें दूसरे देश पहुंचीं, वैसे ही उनके नाम भी दूसरे देश की भाषाओं में आ गए।
प्रत्येक भाषा तब बीज शब्द पर बनी थी। भारतीयों ने पाया कि कुछ बादाम कड़वे थे लेकिन औषधीय तेल निकालने के लिहाज से बढ़िया थे। इसलिए रोगों का इलाज करने वाले चिकित्सक वगैरह जिनकी भाषा संस्कृत थी, इन कड़वे बादाम को ‘वातवैरी’ (वात का दुश्मन) कहा करते थे। आयुर्वेद में रोगों के तीन कारकों- वात, पित्त और कफ में से वात को दूर भगाने में यह वातवैरी कारगर था और इसके लिए प्रभावित जोड़ों पर इस बादाम के तेल की मालिश की जाती। प्रमुख चिकित्सक- चरक और सुश्रुत दोनों ने इस शब्द का प्रयोग किया है। आयुर्वेद में बादाम को ओज या चमक बढ़ाने वाला माना जाता है। आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक, बादाम को रात में भिगोकर सुबह छिलका उतारकर खाने से काफी फायदा होता है। कहा जाता है कि छिलके को हटाकर खाने से बादाम शरीर में बन रहे ज्यादा पित्त को हटा देता है।
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बादाम के फल में सख्त खोल के भीतर स्वास्थ्यकर गिरी- प्रूनस एमिग्डालस- होती है जो प्रून (प्रून सुखाए हुए आलूबुखारे (प्लम) को कहते हैं। इसकी गुठली बाद में निकाल दी जाती है।), चेरी और खुबानी-जैसे फलों के परिवार से संबंधित है। बादाम के साथ ही यहां अच्छी गुणवत्ता वाले खुबानी भी आए। खुबानी की गुठली से कई तरह के बादाम भी मिलते हैं। मीठे बादाम खाने के काम आते हैं तो कड़वे का इस्तेमाल उपचार में होता है और इसका तेल निकालकर लगातार मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है, वहीं चेहरे पर लगाने से रौनक आती है। मुगल काल तक तमाम लोग बादाम के पेड़ों पर खूबानी की कलमें उगाने लगे थे।
मुगल बागबानी को बढ़ावा देने के लिए मशहूर थे और उन्होंने कश्मीर घाटी की ठंडी जलवायु में फलों की खेती को प्रोत्साहित किया। बाद में अन्य क्षेत्रों में भी उन्हें ग्राफ्ट किया गया। अकबर के समय तक बड़े पैमाने पर बादाम उपजाया जाने लगा था, फिर भी चिरौंजी और मूंगफली-जैसे देसी ‘चचेरे भाइयों’ की तुलना में यह काफी महंगा था। दक्षिण में काजू और नारियल-जैसे मेवे बहुतायत में उपजाए जाते थे लेकिन उत्तर में ये महंगे बने रहे। 16वीं शताब्दी के एक यात्री ने लिखा है कि कूचबिहार में तो बादाम का उपयोग नकदी के रूप में भी किया जाता था।
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पूरे भारत में बादाम को अमीरों के खाने की चीज माना जाता है जो इसे भूनकर नमक मिलाकर या फिर मीठे व्यंजनों में मिलाकर खाते। इसके अलावा अच्छे रसोइये बादाम की बर्फी, दूध और जेली वगैरह बनाते। इसे खीर या पायसम में भी मिलाया जाता है। कश्मीर की ग्रीन टी कहवा हो, चावल के पुलाव-जैसे व्यंजनों में सजाने का काम हो या फिर स्वादिष्ट मीठा हलवा बनाने में, पोषक तत्वों से भरे बादाम का खूब इस्तेमाल होता है। आज बादाम के दूध के साथ सूखे, भुने बादाम और बादाम पेस्ट (मार्जिपन) तक आसानी से मिल जाते हैं। बादाम का दूध उन लोगों के लिए बड़ा मुफीद होता है जिन्हें जानवरों के दूध पचाने में दिक्कत होती है। बादाम एक बढ़िया एंटी ऑक्सीडेंट होता है और अगर इसका नियमित रूप से सेवन किया जाए तो उम्र बढ़ने की रफ्तार को धीमा कर देता है। शुगर के स्तर को कम रखने के लिए मधुमेह रोगियों को बादाम (भिगोकर और छीलकर) के सेवन से मदद मिलती है।
बादाम को पोषण के साथ-साथ सौभाग्यवर्धक भी माना जाता है, इसलिए ईसाई धर्म में इसे ईश्वरीय कृपा और मदर मरियम के आशीर्वाद के तौर पर देखा जाता है। अपने सादे भूरे रंग की सख्त खोल के भीतर स्वास्थ्यर्धक गिरी को छिपाए रखने वाला बादाम ईसा मसीह के विनम्रतापूर्वक जीवन के सार को दर्शाता है। भारत में भी, बच्चे के जन्म, शादी तय होने, दुल्हन के आगमन जैसे खुशी के मौकों पर बादाम को सूखे खजूर (छुआरा) के साथ बांटा जाता है। संपन्न परिवारों में महिलाओं को गर्भ के सातवें महीने से हल्दी और बादाम पाउडर मिला दूध पिलाया जाता है जिससे उसमें ताकत बनी रहे और नवजात के लिए पर्याप्त दूध बन सके।
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वसंत ऋतु में जब बादाम के पेड़ फूलों से गदराए होते हैं तो बाग की अलग ही खूबसूरती होती है। जब ये फूल हरे-हरे बादाम बन जाते हैं तो दुधिया मिठास वाले इसके फल बड़े स्वादिष्ट होते हैं। लेकिन उपज के ज्यादातर हिस्से को सहेजकर रखने के लिए अच्छी तरह सुखाया जाता है और सख्त खोल के भीतर गिरी सुरक्षित रहती है। बादाम के पेड़ों ने हमेशा से कहानीकारों और कवियों को आकर्षित किया है। बच्चे का जन्म और एक बांझ महिला की खुद के एक सुंदर बच्चे की लालसा, ब्रदर्स ग्रिम की दो हजार साल पुरानी कहानी में भी है। यह कहानी ऐसी महिला के बारे में है जो सपने में देखती है कि वह बादाम के पेड़ के नीचे खड़ी होकर सेब का छिलका हटा रही होती है। तभी उसकी उंगली कट जाती है और खून की कुछ बूंदें जमीन पर गिर जाती हैं जो बादाम के पेड़ के रूप में उग आती हैं। वसंत आने पर उन पेड़ों पर बादाम के फल आते हैं और वह उसके खोल को हटाकर उसमें से गिरी को निकालती है जो सख्तखोल में वैसे ही सुरक्षित था जैसे गर्भस्थ शिशु। फिर वह उस गिरी को खाती है और उसके नौ महीने बाद एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है। वह इतनी खुश होती है कि खुशी के मारे मर जाती है। दम तोड़ते समय वह इच्छा जताती है कि उसे बादाम के प्यारे पेड़ के नीचे ही दफनाया जाए।
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चूंकि त्योहारी और शादियों का मौसम आने ही वाला है, आप में से कई लोगों को उपहार के रूप में बादाम की छोटी-छोटी पोटलियां मिलेंगी। वैसे लोगों के लिए जो कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने वाले पकौड़े और भुजिया की जगह हेल्दी स्नैक्स चाहते हैं, उनके लिए कैलोरी में कम लेकिन पौष्टिक स्नैक्स का आसान सा नुस्खा है:
सामग्री
2 बड़े चम्मच अच्छी क्वालिटी का शहद
2 कप सादे पहले से भुने हुए बादाम
एक बड़ी चुटकी नमक
1/4 कप तिल के बीज
बनाने की विधि
एक बड़े कटोरे में इन्हें रखकर अच्छी तरह मिलाएं। बेकिंग ट्रेपर मक्खन लगी हुई शीट रखें और मध्यम आंच पर 350 डिग्री पर इसे 5 मिनट बेक करें। फिर इसे ठंडा करके एयर-टाइट टिन में रख दें। इन्हें स्नैक्स के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं।
दूसरा एक स्वादिष्ट पेय का नुस्खा है जो मीन-मेख निकालने वाले लोगों को भी एक बार आजमाने को मजबूर कर देगा।
बादाम केसर मिल्कशेक
यह वैसे लोगों के लिए है जो अपने दिन की शुरुआत पौष्टिक लेकिन कम कैलोरी वाले पेय के साथ करना चाहते हैं:
सामग्री
2 टेबल चम्मच बादाम
1 बड़ा चम्मच अखरोट
1 चाय चम्मच शहद
2-5 केसर के धागे
125 मिली दूध
थोड़ा-सा गुलाब जल या केवड़ा एसेंस की कुछ बूंदें
बनाने का विधि:
बादाम को भिगोकर, छिलके निकालकर हाथ से दरदरा पीस लीजिए। फिर सभी सामग्री को ब्लेंडर में डालकर ब्लेंड कर लें। आप चाहें तो इस पर गुलाब की पंखुड़ियां भी छिड़क सकते हैं। अब शौक से आनंद लें!
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