योजना आयोग के पूर्व सदस्य अरुण माइरा का कहना है कि हम जिन लोगों को पसंद नहीं करते हैं, उनके खिलाफ वास्तविक दुनिया में 'शारीरिक हिंसा' और सोशल मीडिया पर 'शाब्दिक हिंसा' आज बढ़ रही है। इस चलन के बढ़ने के कारण लोकतंत्र की मूल भावना ही संकट में पड़ गई है।
इस समस्या के समाधान के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, "हमें ऐसे लोगों की बातें और गहराई से सुननी चाहिए जो हमारे जैसे नहीं हैं।"
अपनी नई किताब 'लिसनिंग फॉर वेल-बीइंग' के बारे में बात करते हुए उन्होंने देश से जुड़े कई मुद्दों पर अपने विचार साझा किए।
माइरा ने कहा, "लोग उनके खिलाफ हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं, जिन्हें वे नापसंद करते हैं। सोशल मीडिया पर किसी मुद्दे पर व्यक्तिगत विचार पोस्ट करना खतरनाक हो चुका है। जवाब में गाली मिलती है। दूसरे की मर्यादा का सम्मान नहीं किया जाता। लोगों को शारीरिक हिंसा की बार-बार धमकी दी जाती है।"
उन्होंने कहा, “ट्रोल करने वाले क्रूरतापूर्वक अपने शिकार के पीछे पड़ जाते हैं। सोशल मीडिया एक बेहद हिंसक स्थान बन चुका है। यह किसी बदनाम शहर की रात की तरह हो चुका है जहां घूमना सुरक्षित नहीं है।"
Published: 05 Sep 2017, 5:32 PM IST
माइरा ने जोड़ा, “वास्तविक दुनिया में भी सड़कें बेहद असुरक्षित हो चुकी हैं। लंदन, बर्लिन या बार्सिलोना- अचानक ही सड़क पर कोई कार या ट्रक भारी विध्वंस का हथियार बन सकता है।"
उन्होंने कहा कि नस्लवादी और दूसरे देशों से आए लोगों को विरोध करने वाली दक्षिणपंथी ताकतों के उभार ने पश्चिमी दुनिया में लोकतंत्र के संकट को गहरा कर दिया है।
उन्होंने कहा, “अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के समर्थक केवल ट्रंप की बात पर ही भरोसा करते हैं और केवल उनकी विचारधारा वाले समाचार चैनल ही देखते हैं। दूसरी ओर बड़ी संख्या में अमेरिकी नागरिक हैं जो ट्रंप की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, लेकिन उनके भी अपने पसंदीदा समाचार स्रोत हैं। उन्हें एक-दूसरे की बात सुननी चाहिए और एक-दूसरे की चिंताएं समझनी चाहिए। केवल इसी तरह देश समावेशी और हकीकत में लोकतांत्रिक हो सकता है।"
Published: 05 Sep 2017, 5:32 PM IST
नागरिकों के लिए एक दूसरे की बात सुनने की जरूरत किसी भी अन्य देश से ज्यादा भारत में है क्योंकि भारत सबसे अधिक विविधताओं वाला देश है। इसलिए हमें अपने देश में ऐसे लोगों की बात और ज्यादा गहराई से सुनने की कोशिश करनी चाहिए जो अपने इतिहास, अपनी संस्कृति, अपने धर्म या अपनी नस्ल के लिहाज से हमारे जैसे नहीं हैं।
'लिसनिंग ऑफ वेल-बीइंग' में माइरा ने लोगों को सुनने की ताकत का इस्तेमाल करने के तरीके बताए हैं। उनका कहना है कि हम तभी एक समावेशी, न्यायपूर्ण, दोस्ताना और सहज दुनिया बना सकते हैं जब हम उन लोगों को खासतौर पर गहराई से सुनें जो हमारे जैसे नहीं हैं।
माइरा ने आगे कहा, "भारत में भी यही मुद्दे हैं। हमारे देश में अलग-अलग तरह के लोग रहते हैं। हमें अपनी विविधता पर गर्व है। लेकिन सही मायने में एक लोकतांत्रिक देश होने के लिए सभी लोगों को यह महसूस करना चाहिए कि वे समान हैं। नागरिकों के लिए एक दूसरे की बात सुनने की जरूरत किसी भी अन्य देश से ज्यादा भारत में है क्योंकि भारत सबसे अधिक विविधताओं वाला देश है। इसलिए हमें अपने देश में ऐसे लोगों की बात और ज्यादा गहराई से सुनने की कोशिश करनी चाहिए जो अपने इतिहास, अपनी संस्कृति, अपने धर्म या अपनी नस्ल के लिहाज से हमारे जैसे नहीं हैं।"
लाहौर में जन्मे और दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से पढ़ाई कर चुके माइरा ने 'लिसनिंग फॉर वेल-बीइंग' से पहले भी दो प्रसिद्ध किताबों 'ऐरोप्लेन व्हाइल फ्लाइंग: रिफॉर्मिग इंस्टीट्यूशन्स' और 'अपस्टार्ट इन गवर्नमेंट: जरनीज आफ चेंज एंड लर्निग' की रचना कर चुके हैं।
Published: 05 Sep 2017, 5:32 PM IST
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Published: 05 Sep 2017, 5:32 PM IST