“मेरा मानना है कि आजादी के बाद से देश में मुसलमानों ने इतना मुश्किल वक्त कभी नहीं देखा होगा, जितना आज देख रहे हैं। यह सिर्फ देश के मुसलमानों के लिए संकट नहीं है, बल्कि हर उस भारतीय के लिए संकट है जो भारत को धर्म के चश्मे से नहीं देखता है।” यह कहना है सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर का।
कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद की किताब ‘विज़िबिल मुस्लिम, इनविजिबिल सिटीज़न: अंडरस्टैंडिंग इस्लाम इन इंडियन डेमोक्रेसी’ के विमोचन के मौके पर हर्ष मंदर ने कहा कि, “कांग्रेस समते सारे राजनीतिक दल इस चुनौती का सामना करने के लिए सामने नहीं आए हैं। 2014 में हमने यह कहकर खुद को तसल्ली दे दी थी कि लोगों ने उम्मीदों के लिए वोट दिया है, लेकिन इस बार चुनावी माहौल पूरी तरह नफरत भरा था। और सबसे ज्यादा खतरनाक यह है कि पिछली बार से ज्यादा लोगों ने वोट दिया है। मैं कारवान-ए-मोहब्बत के बैनर तले पूरे देश में घूम रहा हूं और लिंचिंग के शिकार हर परिवार से मिलने कोशिश की है। मैंने लोगों में इतना गम, अकेलापन और डर देखा है। एक समाज के तौर पर मैं कह सकता हूं कि हम पूरी तरह बंट चुके हैं। ”
हर्ष मंदर दरअसल उस चर्चा में हिस्सा ले रहे थे जिसमें सलमान खुर्शीद, लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी, बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली, पत्रकार सीमा चिश्ती और प्रोफेसर हिलाल अहमद शामिल हुए थे। देश में मुसलमानों की लिंचिंग की भयावह क्रूरता की तरफ ध्यान दिलाते हुए उन्होंने कहा कि गाय का मुद्दा भी अब तो पीछे छूट गया लगता है। उन्होंने कहा, “लिंचिंग के दौरान जिस तरह आंखें निकाली जा रही हैं, शवों के टुकड़े किए जा रहे हैं वह भयावह है। ऐसे कृत्यों के बाद आपको जेल में होना चाहिए, लेकिन आपका स्वागत-सत्कार किया जा रहा है, आपको हीरो बनाया जा रहा है, यह बेहद खतरनाक है।”
हर्ष मंदर ने राजस्थान पुलिस पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि, “कांग्रेस शासन वाले राजस्थान में पुलिस की भूमिका भी सवालिया घेरों में है। पीड़ितों के साथ आरोपियों जैसा सुलूक हो रहा है। मैंने लिंचिंग का एक भी ऐसा मामला नहीं देखा जहां स्थानीय कांग्रेस नेता पीड़ितों के पास गया हो या फिर उसने वैसा बयान या व्यवहार दिखाया हो जैसा कि न्यूजीलैंड की पीएम ने दिखाया था। भारत में ऐसी घटनाओं से हमारा दिल नहीं पसीजता। हमें फर्क ही नहीं पड़ता। किसी भी राजनीतिक दल को कोई फर्क नहीं पड़ता।”
कार्यक्रम में शामिल पेशे से वकील बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने ऐसी घटनाओं को ‘काउ लिंचिंग’ काम नाम दिया और इसे लोगों पर हमला मानने से इनकार किया। वहीं सलमान खुर्शीद ने कहा कि समानता ही देश की एकता का आधार है। असदुद्दीन ओवैसी का कहना था कि देश की विविधता पर गर्व होना चाहिए।
सलमान खुर्शीद ने कहा कि, “मेरा मानना है कि दिल्ली में तो डर का माहौल नहीं है, लेकिन हां छोटे शहरों और गांवों में बुरा हाल है। ऐसे में हर भारतीय की जिम्मेदारी है कि इस डर के माहौल को खत्म करे।” उन्होंने कहा कि, “अगर लोकतंत्र में अगर असहमति की गुंजाइश खत्म हो जाएगी तो लोकतंत्र पर ही सवाल उठेंगे। किसी असहमति पर विचारों का आदान-प्रदान न होना लोकतंत्र के लिए त्रासदी है।”
उन्होंने हा कि लिब्रल (उदार) का अर्थ होता है “आप दूसरे व्यक्ति के अधिकारों को मानते हैं, उसे गलत साबित करने की कोशिश नहीं करते। आप अपनी शर्तें नहीं थोपते,” उन्होंने माना कि बीजेपी इसमें विश्वास नहीं रखती। हालांकि उन्होंने कहा कि इस बहस और चर्ता में वह राजनीतिक दलों को नहीं खींचना चाहते।
प्रोफेसर हिलाल अहमद ने ऐसे मामलों में मूक रहने पर बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा, “सत्ताधारी दल के नाते इसे कहना चाहिए कि बीजेपी का इस्तेमाल बंद करो।” इस बात पर बीजेपी प्रवक्ता नलिन कोहली ने कहा कि हिंसा की हर घटना की वह निजी तौर पर निंदा करते रहे हैं, “लेकिन देश में 600 चैनल होने के बाद भी मेरी आवाज तक नहीं पहुंची तो इसमें आपका दोष है।”
इसी दौरान असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि, “सिर्फ इसलिए कि किसी पार्टी को अधिक सीटें आ गई हैं तो राज्य का मुख्यमंत्री यह बोलेगा कि ‘ठोक दो’, वे संविधान की शपथ लेते हैं या हिटलर की आत्मकथा मीनकाम्फ की। कानून के राज और कानून द्वारा राज में फर्क है। यूपी में हो रहे एनकाउंटर के मामलों में मानवाधिकार आयोग ने सख्त आदेश दिए हैं। यूपी के मुख्यमंत्री कहते हैं कि हम हर अवैध गतिविधि को लोकतांत्रिक तरीके से खत्म करेंगे। लेकिन जैसे ही एक ब्राह्मण इसका शिकार हुआ तो मामला विवादित हो गया।“
ओवैसी ने कहा, “मैं एक मुख्यमंत्री के रूप में ऐसी भाषा का उपयोग नहीं कर सकता। जब कोई सीएम इस भाषा का उपयोग करता है, तो आप पुलिस बल को लोगों को मारने के लिए कह रहे हैं। लेकिन जब एक ऊंची जाति के व्यक्ति को गोली मार दिया जाता है, तब यूपी सरकार को क्या हो जाता है।” इस पर यूपी के सीएम अजय बिष्ट का समर्थन करते हुए नलिन कोहली ने कहा, "अगर आप इसका दूसरा रुख देखेंगे तो इसका मतलब है कि अगर आप अपराधी हैं, तो आपको डरने की बहुत जरूरत है।"
इस परिचर्चा का संचालन भूपेंद्र चौबे ने किया, जिन्होंने इस विषय पर एक गंभीर सार्थक बहस कराने की बजाय इसे एक टीवी के तमाशे में तब्दील कर दिया और यह बताने की पूरी कोशिश करते रहे कि खुर्शीद कहीं न कहीं यह मानते हैं कि मुसलमानों पर नागरिकता से वंचित होने का खतरा है।" चौबे पुस्तक की विषय वस्तु के मुकाबले पुस्तक के शीर्षक पर अधिक मोहित नजर आ रहे थे। चिश्ती ने भी कुछ ऐसी राय रखी।
चिश्ती ने कहा, “एक दिखाई देने वाला मुसलमान वह है जो दाढ़ी, टोपी के सेट खांचे के भीतर नजर आता है। एक खास तरह की राजनीति के लिए इन पहलुओं का दिखाना जरूरी है, लेकिन जब बात उन प्रतीकों को पहनने वालों की आती है, तो उनके नागरिकता की बात को पीछे धकेल दिया जाता है। इसलिए, इस पहचान का उपयोग एक विशेष तरह की राजनीति के लिए किया जा रहा है, लेकिन उनके नागरिक होने का मुख्य मुद्दा गौण हो जाता है।”
टीवी चैनलों पर कटाक्ष करते हुए ओवैसी ने चुटकी लेते हुए कहा, “उन्हें "दाढ़ी और टोपी वाला आदमी पसंद है क्योंकि यह उनकी टीआरपी के लिए अच्छा है।” यह पूछे जाने पर कि क्या वह एक मुस्लिम नेता हैं, उन्होंने पलटकर कहा, "मैं एक मुस्लिम नेता नहीं हूं ... लोग गलत तरीके से मानते हैं कि मैं एक मुस्लिम नेता हूं। अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के लिए काम करना मेरे जीवन का संघर्ष है।”
हालांकि इस परिचर्चा में शामिल पैनलिस्टों की और अधिक राय ली जा सकती थी, विशेष रूप से सीमा चिश्ती और हिलाल अहमद की, लेकिन चौबे ने फैसला किया कि मंच पर मौजूद लोगों की तुलना में उन्हें अधिक बोलना चाहिए ।
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