2017 को सुबह करीब 7 बज रहा होगा। मेरे फोन की घंटी बजी। पिछले 48 घंटे में जो कुछ भी हुआ था, उससे मैं तब तक उबर नहीं सका था। सोचा, ‘अब क्या हो गया?’ कॉल हेड ऑफ दि डिपार्टमेंट डॉ. महिमा मित्तल का था। उन्होंने कहा, ‘फौरन मेडिकल कॉलेज आ जाइए। आज मुख्यमंत्री और केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री आने वाले हैं।’
मेरी बेटी अभी मेरे हाथ पर ही सोई हुई थी और पत्नी भी गहरी नींद में थी। मैं आहिस्ते से उठा और दोनों के माथे पर प्यार करते हुए तैयार होने लगा। नहीं चाहता था कि उनकी नींद खराब हो। खैर, जल्दी-जल्दी नहा-धोकर तैयार हुआ और सीढ़ियां उतरने लगा। नीचे देखा कि अम्मी जाग रही थीं। उन्होंने कहा कि कम-से-कम ब्रेड-बटर तो ले लो! और फिर हमने साथ-साथ नाश्ता किया, चाय पी और फिर अस्पताल के लिए निकलने को हुआ।
तभी देखा कि मेरा भाई अदील भी जाग चुका है और अखबार पढ़ रहा है। उसने मुझे हेडलाइन दिखाई। 11 और बच्चों की मृत्यु मुख्य खबर थी और उसके साथ यह भी कि ऑक्सीजन सप्लाई बहाल कर दी गई है। हर अखबार में यूपी के स्वास्थ्य मंत्री के इस बयान को प्रमुखता से छापा गया था कि ‘अगस्त में तो हर साल बच्चे मरते हैं।’
मैं जल्दी-जल्दी अखबारों पर नजर दौड़ा रहा था। कई अखबारों ने मेरे बारे में भी छापा था कि कैसे मैंने बच्चों की जान बचाने की कोशिश की। मुझे ‘मसीहा’, ‘फरिश्ता’ कहा जा रहा था। कई अखबारों ने अस्पताल में तब मौजूद रहे लोगों को उद्धृत भी किया था। एक प्रत्यक्षदर्शी गौरव त्रिपाठी ने कहा, ‘बाकी डॉक्टर तो हार मान चुके थे लेकिन डॉ. खान ने प्राइवेट नर्सिंग होम्स से ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम करके हालात को अच्छी तरह संभाला। उन्होंने अपनी कोशिश और तत्काल सही निर्णय लेकर कई की जान बचाई।’ एक अन्य अखबार ने छापा- ‘5 दिन में गोरखपुर के अस्पताल में कम-से-कम 63 बच्चों की मौत। खान ने 12 ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम किया। अपने वार्ड में भर्ती बच्चों को ऑक्सीजन देने के लिए इन सिलेंडरों को लाने के लिए चाइल्ड स्पेशलिस्ट ने अस्पताल के चार चक्कर लगाए।’
डीएनए इंडिया के श्रवण शुक्ला ने लिखा- ‘उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 36 बच्चों की मृत्यु से एक ओर जहां सरकारी अस्पतालों की बदहाली और अधिकारियों की लापरवाह उदासीनता को सामने ला दिया है, वहीं जिस बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में ये मौतें हुई हैं, वहां के एक चाइल्ड स्पेशलिस्ट ने लोगों का मानवता में यकीन कायम रखने वाला काम किया।’
इन सब अखबारों की खबरों पर नजरें दौड़ाते हुए मैंने अपना एटीएम कार्ड निकाला और अपने एक ऑफिस स्टाफ को पास की मशीन से पैसे निकालने को भेज दिया। हालांकि मैं खबरों को विस्तार से नहीं पढ़ सका था लेकिन मोटे तौर पर अखबारों को देखकर मुझे सुकून हो रहा था। अस्पताल जाते समय मेरे पास जान- पहचान वालों के मुबारकबाद वाले तो अस्पताल से जल्दी पहुंचने के फोन आते रहे।
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खैर, मैं सुबह 8:30 बजे जब कैंपस पहुंचा तो पाया कि मेन गेट बंद था और सिर्फ उन्हें ही घुसने दिया जा रहा था जिनके पास आईडी कार्ड था। सैकड़ों रिपोर्टर और हजारों पुलिस वाले वहां मौजूद थे। भाजपा के कई स्थानीय नेता कैंपस के भीतर थे। अब तक सारे न्यूज चैनल में यह खबर चल रही थी कि बिल का भुगतान नहीं होने की वजह से सप्लायर ने ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी थी। अपना आईडी दिखाकर मैं वार्ड पहुंचा। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि पुलिस वाले बड़ी इज्जत से पेश आ रहे थे।
वहां पहुंचे नेता रिहर्सल कर रहे थे कि बच्चों के मां-बाप से (केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री) जेपी नड्डा क्या सवाल पूछेंगे और उनका किस तरह जवाब देना चाहिए। जो अभिभावक ऑक्सीजन की कमी की बात करते पाए गए, उनके बच्चों को वार्ड नंबर-6 में शिफ्ट कर दिया गया जिससे कि वे मुख्यमंत्री से न मिल सकें। कमिश्नर, एसडीएम, सीएमओ, अतिरिक्त निदेशक स्वास्थ्य वगैरह के बीच बैठकों का दौर चल रहा था। प्रिंसिपल को सस्पेंड किया जा चुका था और अब कर्मचारी एक ही सवाल में उलझे हुए थे- अब किस पर गाज गिरने वाली है?
उस दिन अंदर-बाहर, हर जगह का नजारा बिल्कुल अलग था। अस्पताल के अंदर हर बिस्तर पर सिर्फ एक बच्चा। ड्यूटी नर्स आई। उसने नोट्स व्यवस्थित किए और जाकर अपनी जगह पर बैठ गई। उसने गौर किया कि चादरें साफ-सुथरी और नई थीं और तकिये भी साफ। उन पर सोए बच्चों के बाल अच्छी तरह कंघी किए हुए थे।...
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बाहर कैंपस में भी अलग नजारा था। नगर निगम की ओर से डंपर ट्रक कचरा ले जाने को मुस्तैद। दूसरे वार्ड से कुछ सफाई कर्मियों, वार्ड बॉय और नर्सों को चाइल्ड वार्ड में भेज दिया गया था। फार्मेसी में सभी दवाएं उपलब्ध थीं और सभी को हिदायत थी कि अगर मुख्यमंत्री दवाओं की उपलब्धता के बारे में पूछें, तो वे कहें कि सभी दवाएं हमेशा मुफ्त में उपलब्ध हैं। माता-पिता से लेकर विजिटर तक जो भी हल्ला- हंगामा करते पाए गए, उन्हें कैंपस से निकल जाने को कहा जा रहा था। यह तय किया गया था कि मुख्यमंत्री जब वार्ड-100 का राउंड पूरा कर लेंगे तो कॉलेज भवन के अंदर सभागार में वह मीडिया को संबोधित करेंगे। मुझे अपने केबिन में रहने और मुख्यमंत्री से दूर रहने के लिए कहा गया था क्योंकि केवल एचओडी ही उनके साथ रहने वाले थे।
मैंने दूसरों से सुना कि जब मुख्यमंत्री पहुंचे, अफरातफरी मच गई। जैसे ही वह और जे.पी. नड्डा एसयूवी से बाहर निकले, पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें नजरअंदाज करते हुए वार्ड 100 का रुख कर लिया। सिर्फ सीएम, जेपी नड्डा, राज्यसभा सदस्य शिव प्रताप शुक्ला, कमिश्नर, डीएम और डीजीएमई को ही अंदर जाने दिया गया। रिपोर्टर फिर भी पीछे भागे और इसी अफरातफरी में शीशे का प्रवेश द्वार टूट गया।
मुख्यमंत्री रुके, पीछे मुड़े और कहा, ‘धैर्य रखिए। सबको मिलवाऊंगा... पैरेंट से, पेशेंट से। पहले हमें देख लेने दीजिए।’ डीएम और पुलिस वाले ने इसे इशारा समझा और सभी को वहां से हटा दिया। मुख्यमंत्री पहले कमरे में घुसे और पहले रोगी से बातचीत करने लगे- ‘कहां से हैं?, कब ऐडमिशन हुआ था? कोई दिक्कत तो नहीं? मेडिसीन मिल जाती है? दस की रात को क्या हुआ था? ऑक्सीजन की कमी तो नहीं?’
फिर सब दूसरे कमरे में आए। वही सारे सवाल। फिर उन्होंने नड्डा से कहा, ‘ देखें, ये पेशेंट यहां पिछले हफ्ते से हैं। अगर ऑक्सीजन की कमी होती तो ये पेशेंट भी मर गए होते न?’ मैं बगल वाले कमरे से सब साफ सुन रहा था। फिर वह एचओडी की तरफ मुड़े और पूछा, ‘ये डॉ. कफील कौन है?’ कुछ ही देर में मुझे बुलाने के लिए एक जूनियर डॉक्टर मेरे सामने था। वहां क्या होने जा रहा है, इससे पूरी तरह अनजान मैं वीआईपी से भरे उस क्यूबिकल में पहुंचा। सबकी नजरें मुझ पर थीं।
मेरे अभिवादन को नजरअंदाज करते हुए मुख्यमंत्री मुझे घूर रहे थे। उनके चेहरे पर गुस्सा साफ दिख रहा था।
‘तो तू डॉ. कफील है?’
‘जी, सर।’
‘तूने सिलेंडर का अरेंजमेंट किया था?’
‘जी, सर।’ मैं उनके ‘तू’ संबोधन से आहत था लेकिन उन्हें कुछ कहना ठीक नहीं था।
फिर सीएम एक कंसल्टेंट की ओर मुखातिब हुए, ‘ये चार-पांच सिलेंडर से कितनी जिंदगी बचा ली?’
उनके सवाल का किसी ने जवाब नहीं दिया। लेकिन मेरा मन चीख-चीखकर कह रहा था- ‘ चार-पांच नहीं, हमने 54 घंटों में 500 सिलेंडरों की व्यवस्था की।’ लेकिन मैंने शब्दों से कुछ नहीं कहा।
उन्होंने सवाल किया, ‘तो तू सोचता है सिलेंडर ला के तू हीरो बन जाएगा?’ मुझे समझ नहीं आया किइस बात का क्या जवाब दूं... इसलिए चुप रहा।
उन्होंने कहा, ‘देखता हूं तुझे।’
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मुझसे बाहर इंतजार करने को कहा गया और मैं क्यूबिकल से बाहर निकल गया। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मेरे साथ ऐसा सलूक कर्यों किया जा रहा है। फिर सीएम क्यूबिकल से निकले और मुझे नजरअंदाज कर आगे बढ़ गए। फिर सब वार्ड 12 गए। मैं भी पीछे-पीछे गया। राउंड खत्म होने के बाद वे लोग वार्ड-100 के ऑफिस में बैठे। मुख्यमंत्री, जे पी नड्डा और शिव प्रताप शुक्ला बैठे हुए थे जबकि बाकी सभी खड़े थे। मुझे बाहर इंतजार करने को कहा गया। करीब 15 मिनट के बाद मुझे अंदर बुलाया गया।
सीएम ने पूछाः ‘तो तुमने मीडिया के लोगों को बताया कि ऑक्सीजन खत्म हो गई है?’
‘नहीं सर! वे तो पहले से ही गेट पर थे।’
डीएम मेरी ओर मुड़े और चुप रहने को कहा।...
सीएम ने कहा, ‘सबसे पहले तो डॉ. कफील को वार्ड नंबर 10 के सुपरिंटेंडेंट के पद से हटाइए।’
मैं चीख-चीखकर कहना चाह रहा था कि मैं वार्ड नंबर 10 का सुपरिंटेंडेंट नहीं लेकिन मेरे मुंह से आवाज नहीं निकली।...फिर मुझे दूसरे कमरे में इंतजार करने को कहा गया।... अंततः सीएम ने कॉलेज ऑडिटोरियम में मीडिया को संबोधित किया। सीएम ने रिपोर्टरों को कहा कि ऑक्सीजन की कमी के कारण एक भी मौत नहीं हुई है। ये मौतें जापानी इन्सेफेलाइटिस और साफ-सफाई की कमी के कारण हुई। उन्होंने इसे उनकी सरकार को बदनाम करने की साजिश करार देते हुए कहा कि ‘प्रदेश सरकार इतनी कठोर कार्रवाई करेगी कि वह मानक बनेगी लोगों के अनुशासन में रहकर कार्य करने के बारे में।’ उसके बाद सीएम ने मुख्य सचिव के नेतृत्व में एक और जांच समिति के गठन का आदेश दिया जिसे एक सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट देनी थी।...
मेरे भाई का मुझे फोन आया कि मेरी बीवी के अस्पताल पर रिपोर्टरों की भीड़ जमा हो गई है। फिर मुझे बताया कि भीड़ नारेबाजी कर रही है और ईंट-पत्थर फेंक रही है और थोड़ी देर के बाद लोग मेरे दफ्तर भी पहुंच गए। भीड़ के इस हमले के थोड़ी ही देर बाद मेरे भाई के शोरूम से भीड़ टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन वगैरह लूटने लगी। मेरे भाई ने बताया कि उन लोगों को जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा और उसने यह भी बताया कि मेरे बारे में सोशल मीडिया पर एक से बढ़कर एक झूठी बातें चल रही हैं। जैसे; मैंने किसी क्लीनिक के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर चुरा लिए, कुछ गैंगस्टर से मेरे रिश्ते बता रहे थे तो कुछ नेताओं से। दोपहर तक यही सब बातें टीवी पर भी चलने लगीं। दिल्ली-मुंबई के बड़े मीडिया हाउस सच का पता लगाने के लिए गोरखपुर तो आए नहीं। उन्होंने सोशल मीडिया से स्टोरी उठाई और चला दी। फिर वे चीखने लगे- गोरखपुर के 70 बच्चों का कातिल कौन?
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मेरे भाई का मुझे फोन आया कि मेरी बीवी के अस्पताल पर रिपोर्टरों की भीड़ जमा हो गई है। फिर मुझे बताया कि भीड़ नारेबाजी कर रही है और ईंट-पत्थर फेंक रही है और थोड़ी देर के बाद लोग मेरे दफ्तर भी पहुंच गए। भीड़ के इस हमले के थोड़ी ही देर बाद मेरे भाई के शोरूम से भीड़ टीवी, रेफ्रिजरेटर, वाशिंग मशीन वगैरह लूटने लगी। मेरे भाई ने बताया कि उन लोगों को जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा और उसने यह भी बताया कि मेरे बारे में सोशल मीडिया पर एक से बढ़कर एक झूठी बातें चल रही हैं। जैसे; मैंने किसी क्लीनिक के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर चुरा लिए, कुछ गैंगस्टर से मेरे रिश्ते बता रहे थे तो कुछ नेताओं से। दोपहर तक यही सब बातें टीवी पर भी चलने लगीं। दिल्ली-मुंबई के बड़े मीडिया हाउस सच का पता लगाने के लिए गोरखपुर तो आए नहीं। उन्होंने सोशल मीडिया से स्टोरी उठाई और चला दी। फिर वे चीखने लगे- गोरखपुर के 70 बच्चों का कातिल कौन?
10-11 अगस्त की रात के बाद से बीआरडी मेडिकल कॉलेज दो वजहों से चर्चा में था। एक, ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत और दो, भ्रष्टाचार और कॉलेज में होने वाले भुगतान में कमीशन। लेकिन मुख्यमंत्री के दौरे के बाद चर्चा का विषय ही बदल गया। अब सारा ध्यान उन पर केन्द्रित हो गया जिन्हें बलि का बकरा बनाया जा रहा था और इसमें सबसे ज्यादा मेरा नाम उछल रहा था और देखते-देखते मुझे खलनायक बना दिया गया।...
सीएम जैसे ही वार्ड से निकले थे, नर्सों, जूनियर डॉक्टरों से लेकर वार्ड बॉय... सभी मेरे पास आए और कहा- ‘ हम आपके साथ हैं। हमने आपको काम करते देखा है। अगर आपके साथ कुछ हुआ तो हम स्ट्राइक कर देंगे।’ मैंने उन्हें समझायाः ‘नहीं, मेहरबानी करके आप ऐसा न करें। अगर आप स्ट्राइक पर चले जाएंगे तो वार्ड में भर्ती बच्चों का क्या होगा?’ मैंने उन्हें समझाया, ‘आप काम पर जाएं। मुझे कुछ नहीं होगा। ऊपर वाला सब देख रहा है।’
माता-पिता में से एक को बाद में एक रिपोर्टर ने बताया कि ‘डॉक्टरों ने कुछ पैरेंट्स को बुलाया और उन्हें चुपचाप वार्ड के पिछले दरवाजे से शवों को ले जाने के लिए कहा क्योंकि सीएम बैठक कर रहे थे।... चिकित्सा अधिकारी सीएम की उपस्थिति में कोई उपद्रव नहीं चाहते थे।’
सीएम के लखनऊ लौटने के बाद मुझसे कहा गया कि मैं अलग रास्ते से घर जाऊं और मीडिया या किसी और से बात न करूं। मैंने सुना कि सीएम बहुत नाराज और परेशान थे लेकिन कहा गया कि मैं कुछ दिनों में फिर से अस्पताल आ सकता हूं। मैंने अपने बगल में खड़े मेडिसीन के एचओडी से पूछा, ‘लेकिन इसमें मेरी क्या गलती है?’ उन्होंने कहा, ‘चिंता नहीं करें।... अभी मीडिया का दबाव है। ...जब चीजें ठीक हो जाएंगी, तो किसी को याद नहीं रहेगा।’
लेकिन मैं आश्वस्त नहीं था। मैंने पूछा, ‘उन बच्चों का क्या जो मर गए?...उनके माता-पिता इतनी जल्दी नहीं भूल पाएंगे।’
उनकी सलाह थीः ‘उसके बारे में नहीं सोचें। आपने इतने लोगों की जान बचाई - यही बात महत्वपूर्ण है। कुछ दिनों के लिए शहर छोड़ दें - यही आपके लिए बेहतर होगा।’
मैंने कहा, ‘वैसे भी लखनऊ जा रहा हूं क्योंकि मेरी मां और भाई हज के लिए जा रहे हैं और 16 तारीख को उनकी फ्लाइट है’।
‘अच्छी बात है, फिर आपको आज ही निकल जाना चाहिए।’
तब मुझे लग रहा था कि वह अपनी पत्नी को बचाने के लिए ऐसा कर रहे हैं। उनकी पत्नी बाल रोग विभाग की एचओडी थीं और उनसे कोई पूछताछ नहीं की गई थी। मेडिसीन वार्ड के आईसीयू में 10-11 अगस्त की दरम्यानी रात को हुई अठारह मौतों के बारे में भी उनसे किसी तरह की पूछताछ नहीं हुई थी।...
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जब विपक्षी पार्टियों और चंद मुस्लिम नेताओं ने मेरी तारीफ कर दी तो मेरे लिए हालात और खराब हो गए। पूरे मामले को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया।... उस मनहूस रात को जब मैं ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए यहां-वहां भटक रहा था, अल्लाह की कसम खाकर कहता हूं कि मेरे जेहन में कहीं भी यह बात नहीं थी कि मेरे रोगियों से कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान। मैं एक डॉक्टर हूं और इस तरह की बात मेरे प्रोफेशनल करियर में कभी नहीं आई।... तब मुझे नहीं पता था कि हेट न्यूज और मीडिया ट्रायल जल्द ही मुझे सीखचों के पीछे डालकर प्रैक्टिस करने की मेरी काबलियत और मेरी आजादी मुझसे छीनने जा रहे हैं।
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