अर्थतंत्र Arthatantra

नोटबंदी: मोदी की छवि गढ़ने के लिए भारत का नुकसान

मोदी-जेटली की जोड़ी ने अपनी बहानेबाजी के चक्कर में जो भी बातें बनाईं, आंकड़े बताते हैं कि वे सिर्फ जनता को मुर्ख बनाने के लिए कहे गए थे।

फोटो: Getty Images
फोटो: Getty Images 

भारतीय मुद्रा का 86 फीसदी 500 और 1000 के पुराने नोटों को वापस लेने के नरेन्द्र मोदी के मुर्खता भरे तुगलकी फरमान की सरकार और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों को छोड़कर हर किसी ने आलोचना की। अब भारतीय रिजर्व बैंक ने घोषणा की है कि 15 लाख 44 हजार करोड़ में 15 लाख 28 हजार करोड़ की पुरानी मुद्रा बैंकिंग व्यवस्था में वापस लौट गई है जो तकरीबन 99 फीसदी है। इसके अलावा नेपाल में जमा बैलेंस और को-ऑपरेटिव बैंकों को वापस मिले नोटों को अभी गिना जाना बाकी है। इसने सरकार की धोखाधड़ी का पूरी तरह से पर्दाफाश कर दिया है।

8 नवंबर 2017 को टेलीविजन के जरिये किए गए राष्ट्र को अपने संबोधन में मोदी ने कहा था, ‘इससे भ्रष्टाचार, काले धन और नकली नोटों के खिलाफ लड़ाई में भारत के आम आदमी के हाथ मजबूत होंगे।’ उन्होंने बाद में जोड़ा कि इससे आतंकवादी गतिविधियों को मिलने वाली आर्थिक मदद पर रोक लगेगी। यह भारत के प्रधानमंत्री द्वारा अर्थव्यवस्था की भारी उपेक्षा थी। छोटे स्तर पर हो रही कुछ चीजों को छोड़ दें तो भ्रष्टाचार का मुद्रा से कोई खास लेना-देना नहीं है; भ्रष्टाचार के बड़े कारनामे टैक्स चोरी और कम कमाई दिखाकर किए जाते हैं। काले धन का निवेश ज्यादातर संपति, सोना, जमीन-मकान और विदेशी बैंकों में होता है। नकली नोटों के बहुत मामूली संख्या में होने का आकलन है। आतंकी गतिविधियों में लगने वाले पैसे पर थोड़े समय के लिए रोक लग सकती है, लेकिन उसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिसके आधार पर कहा जा सके कि नोटबंदी के बाद आतंकी गतिविधियों में कमी आई है। इन सबकी बजाय पुरानी मुद्रा को नई मुद्रा में तब्दील करने के लिए मोदी ने भ्रष्टाचार के नए दरवाजे को खोल दिए।

इसका एहसास होते ही मोदी बात को घुमाने लगे। उन्होंने डिजिटल लेन-देन और कैशलेस अर्थव्यवस्था का गीत गाना शुरु किया। कैश की कमी के चलते लोग स्वाभाविक रूप से पैसों के लेन-देन के वैकल्पिक तरीकों का इस्तेमाल करने लगे। डिजिटल लेन-देन में आए उछाल को नोटबंदी की सफलता के तौर पर गिनाया जाने लगा। डिजिटल लेन-देन में होने वाले खर्च से बेखबर सरकार को यह एहसास तक नहीं हुआ कि जैसे ही लोगों के पास नकद उपलब्ध होगी वे लेन-देन के अपने पुराने व्यवहार पर लौट आएंगे। आरबीआई ने हाल ही में स्वीकार किया कि डिजिटल लेन-देन फिर से नोटबंदी के पहले वाली स्थिति में पहुंच गया है। इसके बाद मोदी ने दावा करना शुरु किया कि नोटबंदी के बाद टैक्स देने वालों की संख्या बढ़ गई है, लेकिन आंकड़े इस मामले में भी उन्हें गलत ठहराते हैं। मोदी-जेटली की जोड़ी ने अपनी बहानेबाजी के चक्कर में जो भी बातें बनाईं, आंकड़े बताते है कि वे सिर्फ जनता को मुर्ख बनाने के लिए कहे गए थे।

नोटबंदी से कोई फायदा तो नहीं हुआ, लेकिन अर्थव्यवस्था पर इससे होने वाला नुकसान नजर आने लगा है। पहला धक्का उस वक्त लगा जब नोटबंदी के बाद पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़े 6.1 फीसदी पर आ गए जो 2016 में 9.1 फीसदी थे। 30 अर्थशास्त्रियों की राय पर आधारित रॉयटर्स के सर्वे में जीडीपी के 6.65 फीसदी रहने का अनुमान था, जबकि यह उससे भी बहुत कम रहा। अब वित्त वर्ष 2017-18 के आंकड़ों में जीडीपी और नीचे चला गया है। पिछले साल इसी तिमाही में यह 7.9 फीसदी था, जबकि इस बार यह सिर्फ 5.7 फीसदी रह गया है जो तीन साल में सबसे कम है। हालांकि इसमें कोई आश्चर्य नहीं है क्योंकि जो समझदारी भरे अनुमान थे वे सरकार द्वारा जनता को भ्रमित करने की जानबूझकर की गई कोशिश में दब गए थे। सच्चाई यह है कि नोटबंदी ने अस्थायी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से तबाह कर दिया जो जीडीपी में 45 फीसदी का योगदान देती है और कामगारों का 80 फीसदी हिस्सा लगा है। सरकार के प्रतिनिधियों की बात के उलट इस क्षेत्र में सामान्य स्थिति बहाल होने में अभी बहुत वक्त लगेगा।

यह पूरी बात उस अर्थव्यवस्था के बारे में है जिससे आम आदमी शायद ही समझता है। नोटबंदी ने उस पर जो संकट डाला है वह इन आंकड़ों से कहीं ज्यादा बड़ी है। वह अपनी मेहनत की कमाई के पैसों को हासिल करने के लिए एटीएम की कतार में बिताए उन घंटों को कभी नहीं भूल पाएगा। लाखों लोग इसकी वजह से भूखे रह गए और कुछ ने तो जान भी गंवा दी। वह यह कभी नहीं भूल पाएगा कि बिना नकदी के उन दिनों में आरबीआई के रोज-रोज बदलते पैंतरों के बीच उसे कैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। उसने यह सबकुछ मोदी की उस बात पर विश्वास करते हुए सहा कि यह राष्ट्र के लिए अच्छा है। अब यह सच्चाई सामने आ गई है कि इसने राष्ट्र का बहुत ज्यादा नुकसान किया है जिसकी भरपाई होने में काफी वक्त लगेगा।

अगर ठीक से देखें तो यह पता चलेगा कि नोटबंदी का एकमात्र उद्देश्य मोदी की मर्दानगी वाली उस छवि को मजबूत करना था कि वे बड़े फैसले ले सकते हैं।

Published: 01 Sep 2017, 4:27 PM IST

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: 01 Sep 2017, 4:27 PM IST

  • छत्तीसगढ़: मेहनत हमने की और पीठ ये थपथपा रहे हैं, पूर्व सीएम भूपेश बघेल का सरकार पर निशाना

  • ,
  • महाकुम्भ में टेंट में हीटर, ब्लोवर और इमर्सन रॉड के उपयोग पर लगा पूर्ण प्रतिबंध, सुरक्षित बनाने के लिए फैसला

  • ,
  • बड़ी खबर LIVE: राहुल गांधी ने मोदी-अडानी संबंध पर फिर हमला किया, कहा- यह भ्रष्टाचार का बेहद खतरनाक खेल

  • ,
  • विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले कांग्रेस ने महाराष्ट्र और झारखंड में नियुक्त किए पर्यवेक्षक, किसको मिली जिम्मेदारी?

  • ,
  • दुनियाः लेबनान में इजरायली हवाई हमलों में 47 की मौत, 22 घायल और ट्रंप ने पाम बॉन्डी को अटॉर्नी जनरल नामित किया