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बीजेपी के घोषणापत्र के पांच संकल्प जो हवा में ज्यादा, जमीन पर कहीं नहीं हैं

बीजेपी के घोषणापत्र में लिए गए संकल्प की सच्चाई का पता इसी बात से चलता है कि बीजेपी की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध घोषणापत्र में लिखा है कि किसान सम्मान से 12 लाख किसान परिवारों को फायदा होगा, जबकि अंतरिम बजट में कहा गया था कि इस योजना से 12 करोड़ किसान परिवारों को लाभ होगा।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

लोकसभा चुनाव के पहले फेज की वोटिंग के ठीक तीन दिन पहले आखिरकार बीजेपी का घोषणापत्र आ ही गया। इसे संकल्प पत्र का नाम दिया गया है। इसमें अधिकांश ऐसे संकल्प किए गए हैं, जिनकी माला जपते हुए मोदी सरकार ने पांच साल काट दिए। लेकिन इनमें से अधिकांश का चुनावी भाषणों में जिक्र करने में बीजेपी को शर्म महसूस होती है।

बीजेपी अपने घोषणापत्र को लेकर कितनी गंभीर है, इसका अंदाज इससे ही लगाया जा सकता है कि बीजेपी की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध घोषणापत्र में लिखा गया है कि किसान सम्मान से 12 लाख किसान परिवारों को फायदा होगा, जबकि अंतरिम बजट में बताया गया था कि इस योजना से 12 करोड़ किसान परिवारों को फायदा होगा। घोषणापत्र के पांच संकल्पों की पड़ताल जो हवा में ज्यादा है, जमीन पर कम है।

वायदाः 2024 तक हर घर को नल से जल उपलब्ध कराया जाएगा। इसे राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत पूरा किया जाएगा।

असलियतः इस पुराने कार्यक्रम के लक्ष्य कई बार तय किए जा चुके हैं। पहले यह लक्ष्य 2022 तक पूरा होना था, अब इसे बढ़ाकर 2024 कर दिया गया है। इसे पूरा करने की जिम्मेदारी पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय की है। पहले लक्ष्य रखा गया था कि 2017 में देश के 17.6 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से आधे परिवारों, यानी 8.8 करोड़ परिवारों को पाइपलाइन से पेयजल उपलब्ध करा दिया जाएगा। लेकिन सरकार इस साल बमुश्किल 17 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पाइपलाइन से जल उपलब्ध करा पाई।

इसका एक मात्र बड़ा कारण यह है कि इस मंत्रालय को आवंटित बजट का बड़ा हिस्सा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पसंदीदा कार्यक्रम स्वच्छ भारत मिशन पर स्वाहा हो जाता है। जब से स्वच्छता मिशन अभियान शुरू हुआ है, इस पेयजल कार्यक्रम का हिस्सा मंत्रालय के कुल बजट में घटता जा रहा है। मंत्रालय को आवंटित बजट का अब तकरीबन 70 फीसदी हिस्सा स्वच्छ भारत मिशन पर खर्च हो जाता है, जबकि 2013-14 में पेयजल कार्यक्रम की हिस्सेदारी 80 फीसदी थी।

विडंबना यह भी है कि मंत्रालय आवंटित राशि को पूरा खर्च नहीं कर पाता है। जनवरी, 2019 तक केवल 18 फीसदी ग्रामीण परिवारों को ही पाइपलाइन से जल आपूर्ति हो पाई है। अब 2024 तक बाकी 82 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पाइपलाइन से पेयजल उपलब्ध कराने की बात है, लेकिन पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए यह संभव नहीं लगता है।

वायदाः 2022 तक हर गरीब को पक्का मकान देने का वायदा किया गया है।

असलियतः यह भी काफी पुराना है। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत यह लक्ष्य रखा गया था जिसके गाने-बजाने का कोई मौका मोदी और उनके मंत्री नहीं छोड़ते हैं। 2015 में घोषित इस योजना में मय गैस, पानी, बिजली और शौचालय के 2022 तक 2.95 करोड़ मकान ग्रामीण क्षेत्र और शहरों में 1.2 करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें हर लाभार्थी को 1.20 से 1.30 लाख रुपये की आर्थिक मदद की जाती है।

लेकिन इस योजना के लाभार्थियों के लिए यह आर्थिक सहायता अब मुसीबत का सबब बन गई है। ग्रामीण क्षेत्र में मार्च, 2019 तक एक करोड़ मकान बनाने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन 11 फरवरी, 2019 तक केवल 69 लाख मकान ही बन पाए। ग्रामीण आवास योजना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, इस योजना में 1.1 करोड़ लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराए। इनमें 95 लाख मकान निर्माण स्वीकृत हुए। लेकिन निर्माण हो पाया केवल 69 लाख मकानों का। यानी यह योजना भी अपने लक्ष्य से तकरीबन 40 फीसदी पीछे चल रही है।

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, 69 लाख लाभार्थियों ने मकान का निर्माण कार्य पूरा कर लिया लेकिन निर्धारित आर्थिक सहायता केवल 31 लाख को ही मिल पाई है। 38 लाख लाभार्थियों को इस मदद की एक भी किस्त नहीं मिल पाई। स्वाभाविक ही उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है।

शहरी क्षेत्र में भी केवल स्वीकृत मकानों में से सिर्फ 18 फीसदी मकानों के ही निर्माण पूरे हो पाए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) को कार्यान्वित करने की जिम्मेदारी आवास और शहरी कामकाज मंत्रालय की है। इसके आंकड़े बताते हैं कि 68.5 लाख मकान बनाने की स्वीकृति दी गई, लेकिन इसमें से केवल 12.4 लाख मकान ही लाभार्थियों को मिल पाए, यानी स्वीकृत मकानों का तकरीबन 18 फीसदी। इस तरह, 2022 तक 1.2 करोड़ मकानों का निर्माण असंभव ही है।

वायदाः किसानों की आय 2022 तक दोगुनी कर दी जाएगी।

असलियतः यह वादा दोहराया गया है। मोदी ने जनवरी, 2016 में बरेली की किसान रैली में यह वादा पहली बार किया था। लेकिन हकीकत यह है कि मोदी राज में कृषि के हालात बद से बदतर होते गए हैं। कृषि विकास दर औसत रूप से पिछले दस सालों में सबसे कम है। 2014-19 के बीच औसत कृषि विकास दर 2.9 फीसदी रही है जो मनमोहन सिंह के दस सालों 2004-05 से 2013- 14 के शासनकाल में यह दर औसत चार फीसदी से अधिक रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए शेष अवधि में तकरीबन 16 फीसदी की किसान आय वृद्धि दर चाहिए जो नितांत असंभव है। हां, नकद आर्थिक सहायता बढ़ा कर यह लक्ष्य अवश्य प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन ऐसा करने पर कांग्रेस के सामने बीजेपी या मोदी की नाक कटती है।

वायदाः किसान कल्याण और ग्रामीण विकास के लिए घोषणा पत्र में वायदों की भरमार है जिनको पूरा करने के लिए आगामी पांच सालों में 25 लाख करोड़ रुपये निवेश का संकल्प बीजेपी का है। यह निवेश छोटे और सीमांत किसानों के लिए पेंशन, किसान सम्मान योजना, ब्याज मुक्त किसान क्रेडिट कार्ड तिलहन मिशन, देश भर में वेयर हाउसिंग नेटवर्क, जैविक खेती को बढ़ावा, सिंचाई क्षमता के 100 फीसदी इस्तेमाल, नीली क्रांति आदि-आदि वायदों को पूरा करने के लिए खर्च किए जाएंगे।

असलियतः अंतरिम बजट में कृषि का कुल बजट 1.29 करोड़ रुपये का था और ग्रामीण विकास बजट 1.38 लाख करोड़ रुपये का, यानी कृषि और ग्रामीण बजट 2.67 लाख करोड़ रुपये का था। पर संकल्प के अनुसार, अब औसतन 5 लाख करोड़ रुपये सालाना निवेश किए जाएंगे, जो टेढ़ी खीर है।

संकल्प पत्र की कुछ और बातें

संकल्प पत्र में यह नहीं बताया गया है कि फिजिकल इन्फ्रास्ट्रकचर (शिक्षा, स्वास्थ्य आदि बुनियादी सुविधाएं) पर आगामी पांच सालों के लिए कितना खर्च किया जाएगा। विश्व मानकों के हिसाब से भारत इन क्षेत्रों में बहुत पीछे है। पर आगामी पांच सालों में इन्फ्रास्ट्रक्चर पर 100 लाख करोड़ रुपये के पूंजीगत निवेश का वायदा बीजेपी का है, यानी 20 लाख करोड़ रुपये प्रति साल। जबकि 2018- 19 में इसका बजट 5.97 लाख करोड़ रुपये, यानी मौजूदा आवंटन से तीन गुना से भी ज्यादा। पिछला बजट तकरीबन 27 लाख करोड़ रुपये का था।

सवाल है कि इतनी राशि आएगी कहां से? जाहिर है, बाजार से। बाजार से लिए धन से पूंजी लागत बढ़ती है और महंगा इन्फ्रास्ट्रक्चर होने के कारण आम आदमी को इसका कोई लाभ नहीं मिलता है जबकि इसका असल बोझ उसे ही उठाना पड़ता है। लेकिन इतनी विशालकाय रकम जुटाने के कोई संकेत घोषणा पत्र में नहीं हैं।

और अंतिम बातः आगामी पांच सालों में कितने रोजगार अवसर पैदा होंगे, इसका दूर-दूर तक कोई जिक्र संकल्पपत्र में नहीं है। इस मामले में हिंदी अखबार भास्कर का शीर्षक बीजेपी के घोषणा पत्र को पूर्ण रूप से निरूपित कर देता है- ‘रोजगार मुक्त राष्ट्रवाद’।

(लेखक दैनिक अमर उजाला के पूर्व कार्यकारी संपादक हैं।)

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