अपने दुश्मनों को भी दोस्त बना लेते थे 'धरतीपुत्र' मुलायम सिंह यादव, कार्यकर्ताओं का रखते थे खास ख्याल

मुलायम सिंह यादव के लिए हर कोई महत्वपूर्ण था। चाहे वह उनके परिवार वाले हों या गांव का कोई व्यक्ति। वह दोस्तों के दोस्त थे। वह अपने दुश्मनों को भी दोस्त बना लेते थे।

फोटो: IANS
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नवजीवन डेस्क

उत्तर प्रदेश के लोकप्रिय नेता और 'धरतीपुत्र' के नाम से पहचाने जाने वाले मुलायम सिंह यादव को सफलता और असफलता ने कभी प्रभावित नहीं किया। मुलायम सिंह यादव अपनी उस पीढ़ी के राजनेताओं में से एक थे, जिन्होंने अपने मूल्यों को बरकरार रखा और राजनीति में किसी भी चीज से समझौता नहीं किया।

उनके लिए हर कोई महत्वपूर्ण था। चाहे वह उनके परिवार वाले हों या गांव का कोई व्यक्ति। वह दोस्तों के दोस्त थे। वह अपने दुश्मनों को भी दोस्त बना लेते थे। मुलायम सिंह ने पहली बार 1967 में राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर करहल से विधानसभा चुनाव लड़ा था।

मुलायम सिंह यादव ने राज्य विधानसभा के सदस्य के रूप में आठ बार सेवा की। वह पहली बार 1977 में राज्य मंत्री बने। बाद में, 1980 में उत्तर प्रदेश में लोक दल के अध्यक्ष बने और इसके बाद में जनता दल का हिस्सा बन गए।


1982 में, वह उत्तर प्रदेश विधान परिषद में विपक्ष के नेता चुने गए और 1985 तक उस पद पर रहे। जब लोक दल पार्टी का विभाजन हुआ, तो यादव ने क्रांतिकारी मोर्चा पार्टी का शुभारंभ किया। मुलायम सिंह यादव पहली बार 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे।

एक चालाक राजनेता होने के नाते, उनमें राजनीति में उथल-पुथल को भांपने की अदभुत क्षमता थी। नवंबर 1990 में वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय सरकार के पतन के बाद, यादव चंद्रशेखर की जनता दल (सोशलिस्ट) पार्टी में शामिल हो गए और कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री के पद पर बने रहे।

1992 में, यादव ने अपनी समाजवादी पार्टी की स्थापना की और फिर नवंबर 1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन ने राज्य में बीजेपी की सत्ता में वापसी को रोक दिया और वो कांग्रेस और जनता दल के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।

मुलायम सिंह यादव ने 2004 का लोकसभा चुनाव मैनपुरी से लड़ा था, जब वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। हालांकि, बाद में उन्होंने लोकसभा से इस्तीफा दे दिया और 2007 तक मुख्यमंत्री के रूप में बने रहे।


मुलायम सिंह अपने दोस्तों को काफी महत्व देते थे। चाहे फिर बेनी प्रसाद वर्मा हों, आजम खान हों, मोहन सिंह हों या फिर जनेश्वर मिश्र हों, हर किसी का उनके जीवन में एक विशेष स्थान है।

इटावा में बलराम सिंह यादव और दर्शन सिंह यादव के साथ उनकी तनातनी काफी बढ़ गई थी, लेकिन मुलायम ने समय के साथ अपने समीकरण बदलने में कामयाबी हासिल की और दोनों उनके दोस्त बन गए।

मुलायम ने मीडिया से प्यार-नफरत का रिश्ता रखा। कुछ अखबारों के खिलाफ उनके 'हल्ला बोल' आंदोलन ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं। हालांकि, मुलायम ने यह सुनिश्चित किया कि पत्रकारों के साथ उनके व्यक्तिगत संबंध कभी खराब न हों। पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए वे उनके प्रिय 'नेताजी' बने रहे।

पार्टी के एक वरिष्ठ विधायक ने कहा, मुझे एक भी ऐसा मौका याद नहीं है, जब मैं मुलायम सिंह से मिलने गया हूं और खाली हाथ लौटा हूं। उन्हें पार्टी के सबसे छोटे कार्यकर्ता का नाम भी याद रहता था।


मुलायम सिंह यादव एक ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने अपने नौकरशाहों से सही तरीके से काम लिया। उन्होंने कड़े फैसले लिए और उनके अधिकारियों ने उन्हें लागू किया। वास्तव में, कई लोग दावा करते हैं कि नौकरशाही का राजनीतिकरण मुलायम के मुख्यमंत्री बनने के बाद ही शुरू हुआ। पिछले पांच सालों में अखिलेश यादव के पार्टी की कमान संभालने के बाद मुलायम सिंह लोगों के बीच बने रहे।

उनके एक करीबी ने कहा, वह अक्सर हमसे पूछते थे कि क्या उनसे मिलने के लिए कोई इंतजार कर रहा है। उन्हें पार्टी कार्यालय जाना पसंद था। वह वहां की हलचलों का आनंद लेते थे।

आईएएनएस के इनपुट के साथ

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