दिल्ली में कलात्मक चित्रों की अनोखी प्रदर्शनी, कचरे से प्रेरित कलाकृतियों में दंगे और गरीबी का दर्द छलका

सिंगापुर की रहने वाली कविता ने अपनी कला प्रदर्शनी में भारत के हर पहलू को ध्यान में रखकर बनाई गई अपनी कलाकृतियां प्रस्तुत कीं। इस प्रदर्शनी में दंगा-फसाद, गरीबी, भुखमरी जैसी आजकल की अनेक समस्याओं से प्रभावित फोटो, पेन्टिंग और इंस्टॉलेशन का प्रदर्शन हुआ।

फोटोः काज़ी मोहम्मद राग़िब
फोटोः काज़ी मोहम्मद राग़िब

राजधानी दिल्ली के विजुअल आर्ट गैलरी में अप्रैल के पहले हफ्ते में “नो नंबर, नो नेम” शीर्षक से आयोजित कविता इस्सर बत्रा की कला प्रदर्शनी में सचमुच न तो किसी नंबर की जरूरत थी, न नाम की। इस प्रदर्शनी में आजकल के माहौल के दंगा-फसाद, गरीबी, भुखमरी समेत अनेक समस्याओं से प्रभावित फोटो, पेन्टिंग और इंस्टॉलेशन का प्रदर्शन किया गया। यह प्रदर्शनी बेहद खास थी।

कविता का कहना है कि जब वह मॉर्निंग वॉक पर जाती हैं और उन्हें सड़क पर पड़ी हुई चीजें दिखाई देती हैं, तो वह अपने मोबाइल में उनके चित्र कैद कर लेती हैं। फिर, उन चित्रों को वह एक नया कंपोजीशन देती हैं जो पूरी तरह से वास्तविक होती है और आम आदमी को उसका विषय वस्तु समझ में आ जाता है। इसी से प्रेरित होकर उन्होंने प्रदर्शनी में एक इंस्टॉलेशन भी किया, जिसमें सड़क पर पड़ी चीजों का एक कोलाज बनाया है। इसमें पत्ते हैं, सूखे फूल हैं, इलेक्ट्रॉनिक आइटम हैं और वे अनेक प्रकार की चीजें हैं, जो लोग सड़क पर फेंक देते हैं, इन सबको इकट्ठा कर एक कलाकृति का रूप दिया गया है।

कविता रहती तो सिंगापुर में हैं लेकिन उन्होंने भारत के हर पहलू को ध्यान में रखकर इस प्रदर्शनी में अपनी कलाकृतियां प्रस्तुत की। इस प्रदर्शनी को कविता ने रैग पिकर (कूड़ा बीनने वाले लोगों) को समर्पित किया था। इस प्रदर्शनी से जितनी आय हुई, उसका 50 फीसदी हिस्सा वह ‘चिंतन’ नाम के एक एनजीओ, के माध्यम से कूड़ा बीनने वालों की शिक्षा पर खर्च करेंगी।

इस प्रदर्शनी का एक चित्र तुरंत ध्यान खींचने वाला था। इसमें फुटपाथ के पत्थर को दिखाया गया है। पैदल चलने से फुटपाथ पर जो टेक्सचर बनता है, उससे कविता ने यह कंपोजीशन बनाया है। इससे लोगों को एहसास होता है कि हम किस तरह से उस जगह का दुरुपयोग करते हैं। फुटपाथ में उपयोग किये जाने वाले लॉक टाइल्स- जिनसे एक पत्थर दूसरे से जुड़े रहते हैं, हम-आप सब देखते हैं। इसमें गहरे रंगों का उपयोग किया गया है। यह चित्र बताता है कि जीवन की हर घटना एक-दसूरे से जुड़ी है- चाहे उसका रंग काला हो या फिर, कोई और।

इसी तरह, एक अन्य चित्र में फुटपाथ पर पानी गिरा हुआ है, जिससे एक मानव आकृति उभरती दिखती है। इससे यह संदेश निकलता है कि आदमी अच्छा हो या बुरा, वह अपनी बुरी या अच्छी छाप छोड़ जाता है। एक अन्य चित्र में धरती के विभिन्न रूप दिखाने की कोशिश की गई है। इसमें आदमी हैं, पेड़ हैं, पत्ते हैं, जानवर हैं। इस चित्र में कई रंगों का उपयोग किया गया है। दो और चित्र ध्यान खींचने वाले थे। एक में पेड़ के दो पत्ते ही थे, लेकिन इसमें एक आकृति ऐसी थी, मानो वह मछली हो। एक अन्य में एक पत्ता किसी बुजुर्ग की तरह था जो बैठा हुआ है और उसके हाथ में लाठी भी है।

प्रदर्शनी को काफी संख्या में कला प्रेमियों ने देखा और सराहा। लोगों ने कविता के इस खास प्रयोग की काफी प्रशंसा की, क्योंकि यह प्रयास अपने आप में अनोखा था। सड़कों पर बिखरी चीजों और आकृतियों को आधार बनाकर उनका खास तरह का ऐसा कंपोजिशन तैयार करना जो आम लोगों को भी आसानी से समझ में आ सके, अपने आप में अनूठा कला कौशल कहा जा सकता है।

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